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21122---21122---2112 

 

हाय मिली क्या खूब शराफत, तुम भी न बस

बात करो, हर बात शरारत, तुम भी न बस

 

हम को सताने यार गज़ब तरकीब चुनी 

देख हमें गैरों पे इनायत, तुम भी न बस

 

जब भी कहा- है प्यार भला क्या, कुछ तो कहो

लम्स की वो पुरजोर वकालत, तुम भी न बस

 

बात को समझो यूं भी न छेड़ो, हिज्र के गम

रोज़ करेंगे नैन बगावत, तुम भी न बस

 

नाम हमारे चाँद सितारे, कर भी तो दो 

दिल से लिखोगे आज वसीयत, तुम भी न बस

 

जी में जो आये जिद्द कभी तकरार कभी  

फिर से वही आदाब इबादत, तुम भी न बस

 

सिर्फ मुहब्बत सिर्फ मुहब्बत,  रात से दिन 

चुप तो रहो नासाज़ तबीयत, तुम भी न बस

 

लोग करेंगे बात, हिदायत  दी थी मगर

फिर से वही आँखों से हिमाकत, तुम भी न बस

 

बात घुमाकर रात करोगे, तुम तो मियां

जान चुके ‘मिथिलेश’ हकीकत, तुम भी न बस

 

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
----------------------------------------------------

 

(आ. वीनस भाई और आ. गिरिराज सर को समर्पित: उनकी ग़ज़ल की कठिन बह्र पर एक प्रयास)

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Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2015 at 7:24am

आदरणीय मिथिलेश भाई , इस कठिन बह्र पर आपकी मुहब्बत पर रवायती ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी !  दिली मुबारकबादें हाज़िर हैं , कुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

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