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क्षणिकाएं ( मार्च 22 ) — डॉo विजय शंकर

हम समझते थे , 

झूठ के करोड़ों प्रकार होते हैं।
यहां तो सच भी हर एक का
अपना अपना हैं। .......... 1. 

तुम बेशक मेरे रास्ते में
रोड़े बिछा सकते हो ,
मेरा नसीब नहीं बदल सकते,
अगर बदल सकते तो
अपनी तक़दीर बदलते ,
दूसरों के रास्ते में यूं
रोड़े नहीं बिछाते रहते।......... 2.

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on March 5, 2022 at 10:09pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी , मुसाफिर जी, नमस्कार, आपकी सामयिक उपस्थिति से मन प्रफुल्लित हो जाता है। आपकी उत्साहवर्धक टिप्पड़ीं के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद. .इधर कुछ समय कम मिल पाता है , इसलिए लिखना कम हो पाता है। आप सतत लेखन से जुड़े रहते हैं , देख कर सुखद लगता है. सादर.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 5, 2022 at 3:59pm

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन। बहतु सुंदर रचना हुई है । हर भाव यथार््थ है। हार्दिक बधाई।

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