दर्द की एक
अजब अनुभूति होती है ,
अपने और अपनों के दर्द
कुछ न कुछ तकलीफ देते हैं।
कभी किसी बिलकुल
दूसरे के दर्द को महसूस करो ,
वो तकलीफ तो कुछ ख़ास
नहीं देते हैं , पर जो दे जाते हैं
वो किसी भी दर्द से भी
कहीं अधिक कीमती होता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on November 26, 2019 at 11:57am — 14 Comments
जिंदगी जीने का मौक़ा ,
भीड़ से निकल कर मिलता है ,
माहौल कुछ इस कदर
असर करता है।
अकेले हों तो ख़ुद से बात
करने का मौक़ा मिलता है l
भीड़ में तो आदमी बस
दूसरों की सुनता है।
हर आदमी कोई न कोई
सवाल लिए मिलता है ,
आपको अपनी सुनाता है ,
फिर भी आपके जवाब
को कौन सुनता है ?
शायद इसीलिये अकेलापन
आपको बहुत कुछ सीखने
समझने का मौक़ा देता है।
जिंदगी जीने का मौक़ा तो
भीड़ से निकल कर ही मिलता है।
मौलिक…
ContinueAdded by Dr. Vijai Shanker on November 4, 2019 at 4:57pm — 14 Comments
प्रश्न ये है
कि अन्तोगत्वा
हाथ क्या लगता है ?
समझ में आ जाये
तो बताइये हाथ
आपका क्या लगता है ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on October 23, 2019 at 7:55am — 10 Comments
मूर्खता विद्व्ता के सर पर ताण्डव कर रही है ,
सर के अंदर छुपी विद्व्ता संतुलन बनाये हुए है ,
क्योंकि मूर्खता में कोई वजन नहीं है ,
विद्व्ता शालीन है , संयत है , संतुलित है
आराम से मूर्खता को ढोये जा रही है ,
क्योंकि यही युग धर्म है आज , शायद ,
कि वह मूर्खता को शिरोधार्य करे ,
उसे नाचने के लिए ठोस मंच दे , आधार दे।
युगदृष्टा जाने विद्व्ता ने शायद ही कभी
मूर्खता का पृश्रय लिया हो , उसे आधार बनाया हो।
भाषा वैज्ञानिक स्वयं भ्रमित…
Added by Dr. Vijai Shanker on September 27, 2019 at 6:30pm — 4 Comments
सोचता हूँ ,
अब तो यह भी सोचना पड़ेगा
कि कैसे सोचते हैं हम ?
कितनी सीमाओं में सोचते हैं हम ?
या किस सीमा तक सोचते हैं हम ?
कुछ सोचते भी हैं हम ?
अगर नहीं तो क्यों नहीं सोचते हैं हम ?
सच तो यह है कि ' बिना विचारे जो करे ' .....
भी नहीं सोचते हैं हम।
खुद में गज़ब का विश्वास रखते है हम ?
बस सोचने में क्रियाशील रहते हैं हम ,
जितनी तेजी से आगे जाते हैं
उतनी हे तेजी से लौट आते हैं।
नतीज़तन वहीं के वहीं रह जाते हैं हम।…
Added by Dr. Vijai Shanker on September 23, 2019 at 10:01am — 6 Comments
एक नेता ने दूसरे को धोया ,
बदले में उसने उसे धो दिया।
छवि दोनों की साफ़ हो गई।।.......1.
मातृ-भाषा हिंदी दिवस ,
एक उत्सव हम ऐसा मनाते हैं ,
जिसमें हम हिंदी बोलने वालों से
उनकीं माँ का परिचय कराते हैं।। .......2 .
अपनों से हट के कभी
दूर के लोगों से भी मिला करो ,
वो कुछ देगा नहीं ... ,
हाँ ,धोखा भी नहीं देगा।l ....... 3 .
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on September 17, 2019 at 10:30am — 8 Comments
कभी लगता है ,
वक़्त हमारे साथ नहीं है ,
फिर भी हम वक़्त का साथ नहीं छोड़ते।
कभी लगता है ,
हवा हमारे खिलाफ है ,
फिर भी हम हवा का साथ नहीं छोड़ते l
कभी लगता है ,
जिंदगी बोझ बन गयी है ,
फिर भी हम जिंदगी को नहीं छोड़ते l
कभी लगता है
सांस सांस भारी हो रही है ,
फिर भी हम सांस लेना नहीं छोड़ते l
ये सब जान हैं
और जान के दुश्मन भी l
जिंदगी की लड़ाई हम
जिंदगी में रह कर लड़ते हैं ,
जिंदगी के बाहर जाकर कौन…
Added by Dr. Vijai Shanker on June 16, 2019 at 10:04pm — No Comments
सूक्ष्म कविता - गणतंत्र - डॉo विजय शंकर
गण का तंत्र
या
तंत्र का गण ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on January 26, 2019 at 10:47am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 8, 2018 at 10:05pm — 18 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 15, 2018 at 9:59am — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 7, 2018 at 7:59pm — 11 Comments
बहुत कुछ , बहुत हास्यास्पद है ,
फिर भी किसी को हंसी आती नहीं।
बहुत कुछ , बहुत दुखदायी है ,
फिर भी आंसू किसी को आते नहीं।… 1.
बाज़ार भी अजीब जगह है
जहां आप शाहंशाह होकर भी
रोज बिक तो सकते हैं , पर एक
दिन को भी अपनी पूरी हुकूमत में ,
पूरा बाज़ार खरीद नहीं सकते ………. 2 .
बहुत शिकायतें हैं हवा से
कि बुझा देती हैं चिरागों को ,
चलो एक चिराग ही बिना
हवा के जला के दिखा दो। ……….. 3…
Added by Dr. Vijai Shanker on June 21, 2018 at 8:30pm — 13 Comments
क्या फरक पड़ता है ,
कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने
आपको और आपकी
किसी भी बात को नहीं समझा।
आपको , आप जैसे लोगों ने तो
समझा और खूब समझा।
आपकी नैय्या उनसे और
उनकी नैय्या आपसे
पार लग ही रही है ,
आगे भी लग जाएगी ।
- मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2018 at 5:41am — 7 Comments
आप सही हैं,
वह भी सही है ,
हर एक सही है ,
फिर भी कुछ भी
सही नहीं है।
कुछ गिने चुने
लोग बहुत खुश हैं ,
यह भी सही नहीं है।
सच जो भी है ,
सब जानते हैं ,
बस मानते नहीं ,
यह भी सही नहीं है।
ऊँट सामने है ,
देखते नहीं,
हड़िया में ढूँढ़ते है ,
यह भी सही है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on February 21, 2018 at 8:40am — 13 Comments
कुछ डोरियां
कच्चे धागों की होती हैं ,
कुछ दृश्य होती हैं ,
कुछ अदृश्य होती हैं ,
कुछ , कुछ - कुछ
कसती , चुभती भी हैं ,
पर बांधे रहती हैं।
कुछ रेशम की डोरियां ,
कुछ साटन के फीते ,
रंगीले-चमकीले ,फिसलते ,
आकर्षित तो बहुत करते हैं ,
उदघाट्न के मौके जो देते हैं ,
पर काटे जाते हैं।
इस रेशम की डोरी
की लुभावनी दौड़ में ,
ज़रा सी चूक ,
बंधन की डोरियां
छूट गईं या टूट गईं ,
रेशम की डोरियां …
Added by Dr. Vijai Shanker on January 4, 2018 at 9:30am — 11 Comments
1.
सच का कहीं दूर तक
नहीं कोई पता है।
हाँ ये सच है
कि बहुत कुछ
झूठ पर टिका है।
2.
रेत मुठ्ठी से जब
फिसल जाती है ,
जिंदगी कुछ कुछ
समझ में आती है।
3.
रोज रोज के तजुर्बे
यूँ बीच बीच में
बांटा न करो ,
ये जिंदगी गर
एक सबक है तो
उसे पूरा तो हो लेने दो
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on December 24, 2017 at 7:52pm — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on November 13, 2017 at 10:57am — 15 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on November 7, 2017 at 8:30am — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 24, 2017 at 10:29am — 21 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 19, 2017 at 10:00pm — 2 Comments
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