For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

.जिंदगी तुझे ही पढ़ लेते हैं ---डा० विजय शंकर

चलो किताबों को बंद कर देते हैं
जिंदगी तुझे ही सीधे-सीधे पढ़ लेते हैं .
किताबों में सबकुझ तेरे बारे में ही तो है
लो , तुझसे ही सीधे-सीधे बात कर लेते हैं.
किताबें तो बहुत सी हैं , मिल भी जायेंगीं
उन को पढ़ लूँ तो क्या तू मिल जायेगी .
मौत को कितने और कौन-कौन पढ़ते हैं
पर उसका वादा है , सबको मिलती है .
भरोसा नहीं , तू किसको मिले , कितनी मिले
तेरे लिये , तेरे चाहने वाले दिन रात लगे रहते हैं .
अरे सब कुछ तो तेरे लिए ही है जिंदगी में
तू है तो सब है , तू नहीं तो क्या है जिंदगी में .
इसलिए चलो किताबों को बंद कर देते हैं .
तू है , तुझसे सीधे-सीधे बात कर लेते हैं .
..डा० विजय शंकर---------------
( मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 789

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 14, 2014 at 9:09am
Beautiful . You are really an established poet . My regards to you Zid Saheb .
Comment by Zid on June 14, 2014 at 7:56am

One of my first introduction to gazhals was through Lagta nahi hai dil mera...Years on the kafiya & raddif had been on my mind. Its a pleasure sharing my gazhal structured on the same. Whereas the Rafi has sung the same in Raag Yaman Kalyan set to Dadra (Actual music does not play the rhythm) , I composed the saem in raag Maarwa-set to addha Tal 

कैसे  हुवे  है  शर्मसार  आज  वो   इकरार  में

जैसे  न  हो  कोई  भी  तर्क  इसमें  और  इंकार  में

कौनसी  खबर  लए  हो  बशीर   बयाबान  से 

अब  क्या  हसी  भरोगे  तुम  अजीब -ओ -बेक़रार  में

रहने  दो    सब्र  थोड़ी दुरुस्त -ओ -बुनियाद  है

बंदः  किये  है  सजदा  ताजिस्ट   तेरे  इंतज़ार  में 

ले  आये  बरिह्या  यहाँ  जज़्ब -ओ -रक्स  तुम  

अब  कौन  नज़र -शनास  मिले  ऐसे  पा -ओ -झंकार   में

जस्बा -ओ -जफ़ा  अलट  पलट  दिखाए  हर  अदा   से

बाकि  नहीं  कुछ  भी  जमाल -ओ - शक्ल -ओ - सरसार  में

आएंगे  उठके  हम  न  कभी  तमाशा -ऐ -दोज़ाक   से

अब  क्या  करे  बग़ावत  फकत  एक   दो  चार  में  

ये  कौनसा  ईमान  है  जो  पढ़  रहे  हो  ज़िद

ढूंढे  है  फितरत -ओ -जहा   बेकस  गुलोकार  में

Comment by Zid on June 14, 2014 at 7:21am

Each one of us has a problem communicating with world. As we make ourselves more & more dependedent on technology the humna chord is becoming torn, twisted; almost jarring. I wish to represent all those who share my anxiety & dis-position.

ऐसी   सिमटी  कायनात   न  जाने  बहरे  किधर  को  गई

मुह  ताकते  रह  गए  शब -ऐ -नम  किधर  को   गई

रहने  दो  यह  सूरते -मस्नूई  खाक  जी  सकेंगे 

तमाम  बातें  है  ख़म  अख्लाख़  किधर  को  गई 

इस  शेहेर  में  शै  है  कबीले -इल्तिफ़ात  बहोत

लोग  बेहेले  रास्तोंपर  पुख्ता  महफ़िल  किधर  को  गई

खुद -ज़ुल्मी  हमसे  न  होगी  के  दुकानोमें  बीके

न  जाने  फिक्रो -फन -ओ -कास्त्रे -शान  किधर  को गई

क्या  कशिश  थी  के  कुछ  हुवे  फ़ना  आज -खुद  रफ्ता

लो  बुज़नेसे  पहले  आखिर -ऐ -शब  किधर  को  गई

पूछते  क्या  हो  अदीब  की  ज़ुबा  होती  ही   है  कर्मफरमा

वह -नह -आह -होगी  मगर  वो  निगाही  किधर  को  गई

ऐ  शमा  तू  रोशन -सितारा  रहना  दास्ताँ -ऐ -मार्ग 

कौन  पढ़े  तारीकी में  मंज़िल  किधर  को  गई

ताजिस्ट  क़र्ज़  किये    ज़मनेने   कुछ  इनाम  तो  देते

पर तेरी  भी  ज़िद  गुमगश्ता  न  जाने  किधर  को  गई

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 13, 2014 at 12:08am
पंक्तियाँ आपको पसंद , धन्यवाद आ ०मीना पाठक जी.
Comment by Meena Pathak on June 12, 2014 at 9:57pm

क्या बात है .. बहुत सुन्दर .. बधाई आप को

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 12, 2014 at 8:08pm
आपकी प्रेरक अभिव्यक्ति एवं बधाई लिए धन्यवाद , आ ० अन्नपूर्णा बाजपेयी जी.
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 12, 2014 at 8:07pm
ह्रदय से आभार , प्रिय गिरिराज जी ,
Comment by annapurna bajpai on June 12, 2014 at 7:52pm

सुंदर रचना , आ0 विजय शंकर जी बधाई आपको । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 6:09pm

लाजवाब चिंतन के लिये आपको दिली बधाइयाँ , आदरणीय विजय भाई ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 10:36pm
Thanks for encouragement and appreciation, Jitendura Geet ji.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service