Comment
One of my first introduction to gazhals was through Lagta nahi hai dil mera...Years on the kafiya & raddif had been on my mind. Its a pleasure sharing my gazhal structured on the same. Whereas the Rafi has sung the same in Raag Yaman Kalyan set to Dadra (Actual music does not play the rhythm) , I composed the saem in raag Maarwa-set to addha Tal
कैसे हुवे है शर्मसार आज वो इकरार में
जैसे न हो कोई भी तर्क इसमें और इंकार में
कौनसी खबर लए हो बशीर बयाबान से
अब क्या हसी भरोगे तुम अजीब -ओ -बेक़रार में
रहने दो सब्र थोड़ी दुरुस्त -ओ -बुनियाद है
बंदः किये है सजदा ताजिस्ट तेरे इंतज़ार में
ले आये बरिह्या यहाँ जज़्ब -ओ -रक्स तुम
अब कौन नज़र -शनास मिले ऐसे पा -ओ -झंकार में
जस्बा -ओ -जफ़ा अलट पलट दिखाए हर अदा से
बाकि नहीं कुछ भी जमाल -ओ - शक्ल -ओ - सरसार में
आएंगे उठके हम न कभी तमाशा -ऐ -दोज़ाक से
अब क्या करे बग़ावत फकत एक दो चार में
ये कौनसा ईमान है जो पढ़ रहे हो ज़िद
ढूंढे है फितरत -ओ -जहा बेकस गुलोकार में
Each one of us has a problem communicating with world. As we make ourselves more & more dependedent on technology the humna chord is becoming torn, twisted; almost jarring. I wish to represent all those who share my anxiety & dis-position.
ऐसी सिमटी कायनात न जाने बहरे किधर को गई
मुह ताकते रह गए शब -ऐ -नम किधर को गई
रहने दो यह सूरते -मस्नूई खाक जी सकेंगे
तमाम बातें है ख़म अख्लाख़ किधर को गई
इस शेहेर में शै है कबीले -इल्तिफ़ात बहोत
लोग बेहेले रास्तोंपर पुख्ता महफ़िल किधर को गई
खुद -ज़ुल्मी हमसे न होगी के दुकानोमें बीके
न जाने फिक्रो -फन -ओ -कास्त्रे -शान किधर को गई
क्या कशिश थी के कुछ हुवे फ़ना आज -खुद रफ्ता
लो बुज़नेसे पहले आखिर -ऐ -शब किधर को गई
पूछते क्या हो अदीब की ज़ुबा होती ही है कर्मफरमा
वह -नह -आह -होगी मगर वो निगाही किधर को गई
ऐ शमा तू रोशन -सितारा रहना दास्ताँ -ऐ -मार्ग
कौन पढ़े तारीकी में मंज़िल किधर को गई
ताजिस्ट क़र्ज़ किये ज़मनेने कुछ इनाम तो देते
पर तेरी भी ज़िद गुमगश्ता न जाने किधर को गई
क्या बात है .. बहुत सुन्दर .. बधाई आप को
सुंदर रचना , आ0 विजय शंकर जी बधाई आपको ।
लाजवाब चिंतन के लिये आपको दिली बधाइयाँ , आदरणीय विजय भाई ॥
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