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बात जब भी शहर में -- ..डा० विजय शंकर

बात जब भी शहर में
अंधेरा मिटाने की होती है ,
तेरे घर की रौशनी कुछ
और बढ़ा दी जाती है |
बात जब भी मजबूर
सताये लोगो को
न्याय दिलाने की होती है
तुझे एक नयी जमानत
और दिला दी जाती है |्
तेरे हर जुल्म हर गुनाह के साथ ,
तेरी शोहरत बढ़ाई जाती है ,
तेरे सताये गुमनाम अंधेरों में ,
सिमट जाते हैं , और
चकाचौंध रौशनी कर तेरे
चेहरे की रौनक बढ़ाई जाती है |
तेरी मौज , तेरी तफरीह में जो
मिट गये , उन्हें कफन भी नहीं मिला ,
तेरे नाम पर मंदिरों में चढ़ावे और
दरगाहों पर चादरें चढ़ाई जाती हैं |
बात जब भी कमजोरों के
हाथ मजबूत करने की होती है ,
तेरी पकड उन पर और
मजबूत बनाई जाती है |
बात जब भी शहर में
अंधेरा मिटाने की होती है ....

डा० विजय शंकर

( मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 580

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on June 19, 2014 at 5:52pm
आपको रचना पसंद आई , धन्यवाद , आदरणीय विजय निकोर जी ।
Comment by vijay nikore on June 19, 2014 at 1:38pm

बहुत ही अच्छी रचना है। बधाई आदरणीय विजय जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 2:48am
आदरणीय सौरभ पण्डे जी ,
बात जब भी शहर में रचना पसंद आई , धन्यवाद .
इसी रचना के साथ मैंने ओ बी ओ के मंच में प्रवेश लिया था .
सादर .

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 18, 2014 at 2:18am

सद्यः समाप्त आयोजन में आपको पढ़-सुन चुका हूँ अब. वैसे यह प्रस्तुति काव्य-महोत्सव के प्रारम्भ होने के पूर्व की है.

एक अच्छे सहानुभूतिपूर्ण विचार को सार्थक शब्द मिले हैं.  इस प्रस्तुति को साझा करने के लिए हृदय से धन्यवाद, आदरणीय

सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 12, 2014 at 8:12pm
ह्रदय से आभार , प्रिय गिरिराज जी , पंक्तियों को सम्मान देने के लिए .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 5:50pm

आदरणीय विजय भाई , समज के दो वर्गों के द्वंद को सुन्दरता से बयान किया है , आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 5:01pm
Thank you very much Dr. Prachi Singh ji for all your nice words and appreciation and welcoming me on the forum . Regards .
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 4:57pm
Thanks Narendra Chauhan ji for your nice comment .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 11, 2014 at 12:27pm

बहुत सुंदर, प्रभाव डालती रचना आदरणीय डा.विजय जी. आपको बहुत बहुत बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 11, 2014 at 10:03am

आ० डॉ० विजय शंकर जी 

मंच पर आपका स्वागत है...

आपकी पहली प्रस्तुति से गुज़ारना अच्छा लगा ..इस प्रस्तुति में ग़ज़ल सी रवानगी है

समाज की दोरंगी तस्वीर में रंगों के बढ़ते फासले पर आपने बहुत गहन सोच को प्रस्तुत किया है.

मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारिये 

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