For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शिक्षा और अंगूठा -- डॉo विजय शंकर

द्रोणाचार्य
एक युग प्रवर्तक शिक्षक ,
राजकीय सरंक्षण के शिक्षक ,
सरकारी व्यवस्था के आधीन ,
शिक्षक और वह भी पराधीन ,
एकलव्य से अंगूठा मांगने को विवश ,
शिक्षा को सीमित करने को लाचार।
राज्य के राजकीय गुरु थे द्रोण ,
सरकारी अध्यापक से थे द्रोण ,
राजपुत्रों को पढ़ाते थे द्रोण
राजहित में पढ़ाते थे द्रोण ,
जनहित नहीं जानते थे द्रोण ,
राजहित में ही एकलव्य से अंगूठा
मांग बैठे थे बिचारे द्रोण ………

एक परम्परा छोड़ गए द्रोण ,
अंगूठे का महत्त्व बता गए द्रोण ,
शिक्षा को अगूंठे से जोड़ गए द्रोण ,
चल जाए गुरु की तो आज भी
शिष्य से क्या न मांग ले गुरु ,
छात्र तो वैसे ही बात बात पे अंगूठा दिखाते हैं,
सरकारी शिक्षा में छात्रअंगूठा छाप से रह जाते हैं,
तमाम तथाकथित पढ़े लिखे भी
पूरे अंगूठा छाप ही नज़र आते हैं ,
व्यवस्था में उच्चासीन मिल जाते हैं ,
करते कुछ नहीं , अंगूठा दिखाते हैं ,
उसे ही जीत का प्रतीक भी बतातें हैं……

द्रोण यदि राजकीय नियंत्रण से बाहर होते
तो महाभारत के परिणाम ही कुछ और होते
शिक्षा को राजकीय नियंत्रण से मुक्त होना चाहिए
शिक्षा पर राज का नहीं ,
राज पर शिक्षा का असर होना चाहिए
नक़ल की शिक्षा की तिलांजलि हो,
व्यवस्था कारों की भी पहले शिक्षा हो,
वरना अंगूठे चलाते रहो ,
अंगूठे दिखाते रहो ,
अंगूठा चलते देखते रहो,
या फिर बच्चे ही बने रहो ,
अंगूठा चूसते रहो ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

Views: 705

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 6, 2015 at 8:51pm
सदियों से इस सत्य को झेल रहे हैं । बहुत सटीक टिप्पणी की आपने आदरणीय श्याम मठपाल जी, बहुत बहुत आभार , बधाई हेतु धन्यवाद , सादर।
Comment by Shyam Mathpal on April 6, 2015 at 8:42pm

आदरणीय डॉo विजय शंकर ji,

सदियों के सत्य को उजागर किया आपने. तहे दिल से ढेरों बधाई.

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 6, 2015 at 5:42pm
आदरणीय नीरज कुमार नीर जी , आपको रचना पसंद आई, आभार, आपकी बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Neeraj Neer on April 6, 2015 at 10:34am

बहुत ही सुन्दर संदेशप्रद रचना ... हार्दिक बधाई मान्यवर .. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 6, 2015 at 7:18am
आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , आपने कविता को समय दिया और बहुत मनोयोग से उसका पाठ किया , बहुत बहुत आभार , आपकी बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on April 5, 2015 at 9:09pm

राज्य के राजकीय गुरु थे द्रोण ,
सरकारी अध्यापक से थे द्रोण ,
राजपुत्रों को पढ़ाते थे द्रोण
राजहित में पढ़ाते थे द्रोण ,
जनहित नहीं जानते थे द्रोण ,
राजहित में ही एकलव्य से अंगूठा
मांग बैठे थे बिचारे द्रोण ……… बहुत ही सुन्दर रचना , एक तीखा प्रहार , साथ ही हल भी , बहुत -बहुत बधाई आदरणीय डॉक्टर  विजय शंकर  सर ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 5, 2015 at 8:00pm
प्रिय कृष्ण मिश्रा जी, पर इस गज़ब के पूर्व जो अज़ब है, जो अतीत से चला आ रहा है , वह भी तो हटना चाहिए , ऐसा जो है कुछ तो बदलना चाहिए, कुछ ख़ास कर नहीं सकते , एक प्रयास तो होना चाहिए। आपका बहुत बहुत आभार आपकी टिप्पणी के लिए , धन्यवाद , सादर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 5, 2015 at 6:54pm

आ० विजय सरजी! आप तो गजब ढा रहे है आजकल!अभिनंदन इस रचना पर!

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 5, 2015 at 11:06am
प्रिय मिथिलेश जी , आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 5, 2015 at 11:05am
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , आभार एवं धन्यवाद , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service