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कभी यूं भी-क्षणिकाएँ - 5 --- डॉo विजय शंकर

1. न कहीं जाना था
न जल्दी में थे हम
तुमने रोका नहीं
दूर हो गए हम………

2. जलने वाले
पीठ पीछे जलते हैं
जल के रौशनी भी
अपनों के लिए ही करते हैं ………

3. चले गये
मेरी जिंदगी से वो
किताबों के कमजोर कवर
जल्दी उत्तर जाते हैं
गुम हो जाते हैं ..............



4. अपनापन तो
कहीं भी होता है
वहां भी , जहां अपना
कोई भी नहीं होता है ………

5. ख़्वाब अधूरे नहीं ,
पूरे थे ,
अफ़सोस बस
पूरे हुए नहीं ..........

6. सब बुरे लगने लगें
आपके आगे
इतना अच्छा होना भी
अच्छा नहीं …………

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 590

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 3:00am
आदरणीय सुश्री कांता रॉय जी, आपको क्षणिकाएँ पसंद आईं , आपका बहुत बहुत आभार। आपकी बधाई हेतु ह्रदय से धन्यवाद। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 2:57am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपको क्षणिकाएँ पसंद आईं , आपका बहुत बहुत आभार। आपकी हार्दिक बधाइयों हेतु ह्रदय से धन्यवाद। सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 2:55am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, आपको क्षणिकाएँ पसंद आईं , आपने उन पर बहुत ही सुन्दर सारगर्भित प्रतिक्रिया बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त की , आपका बहुत बहुत आभार। आपकी हार्दिक बधाई हेतु ह्रदय से धन्यवाद। आपके द्वारा इंगित दोनों बिन्दुओंपर यथा शीघ्र कार्यवाही कर रहा हूँ। सादर।

Comment by kanta roy on April 7, 2015 at 11:03pm
ख्वाब अधूरे नहीं , पूरे थे , अफसोस बस पूरे हुए नही ..... क्या कहे दिल को छू गई ..... दिल से निकले जज्बात ही दिल तक पहुँच पाते है । बधाई आपको आ.डा.विजय शंकर जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2015 at 9:41pm

आदरणीय विजय भाई , सभी क्षणिकायें बहुत सुन्दर लगीं , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 7, 2015 at 5:11pm

आदरणीय विजय शंकरजी, डूब कर क्षणिकाएँ लिखी हैं आपने.

अपनापन तो
कहीं भी होता है
वहां भी , जहां अपना
कोई भी नहीं होता है ………

ख़्वाब अधूरे नहीं ,
पूरे थे ,
अफ़सोस बस
पूरे हुए नहीं ..........

सब बुरे लगने लगें
आपके आगे
इतना अच्छा होना भी
अच्छा नहीं …………

इन तीनों क्षणिकाओं की उड़ान का ज़वाब नहीं. बहुत खूब ! बाकियों पर तनिक और तार्किक होना होगा.
हृदय से शुभकामनाएँ आदरणीय.

एक बात अवश्य कहूँगा. आपकी प्रत्येक क्षणिका अलग-अलग है. फिर सभी को अलग-अलग क्रम-संख्या देनी थी. अन्यथा मेरे जैसा पाठक भूलवश या भ्रमवश सभी क्षणिकाओं के मध्य तारतम्यता ढूँढने लगता है.

इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 7, 2015 at 10:19am
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी रचना आपको पसंद आईं , आभार एवं बधाई हेतु धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 7, 2015 at 10:15am
आपको पसंद आईं , आभार , प्रिय कृष्ण मिश्रा जी, धन्यवाद , सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on April 7, 2015 at 10:14am
सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 7, 2015 at 9:49am

जलने वाले भी
पीठ पीछे जलते हैं
रौशनी भी अपनों के
लिए ही करते हैं ………

बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएँ!

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