दर्द की एक
अजब अनुभूति होती है ,
अपने और अपनों के दर्द
कुछ न कुछ तकलीफ देते हैं।
कभी किसी बिलकुल
दूसरे के दर्द को महसूस करो ,
वो तकलीफ तो कुछ ख़ास
नहीं देते हैं , पर जो दे जाते हैं
वो किसी भी दर्द से भी
कहीं अधिक कीमती होता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय निकोर जी , रचना पर आगमन आपके से एक सुखानुभूति हुयी। आपके के द्वारा उसकी सराहना से हौसला बढ़ा , आपका ह्रदय से आभार , आप स्वस्थ एवं सानंद रहें , धन्यवाद , सादर।
आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी , आपके रचना पर आगमन एवं उसकी प्रशस्ति के लिए ह्रदय से आभार , एवं धन्यवाद , सादर।
आपकी रचना हम सभी के लिए, समाज के लिए, प्रेणादायक है, मार्गदर्शक है। हार्दिक बधाई, मित्र विजय जी।
आद0 डॉ विजय शंकर जी सादर अभिवादन। बढ़िया प्रस्तुति, गागर में सागर भरती हुई।। बधाई स्वीकार कीजिये
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आपकी बहुत खूबसूरत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार , सच तो यह है की आपकी टिप्पणियां न केवल गंभीर और धनात्मक होती हैं आगे और विचारों का सृजन करतीं हैं। सच तो यह है कि किसी के दर्द को समझने के लिए एहसास का होना ही बहुत बड़ी बात है , दुनिया में लोग किस किस तरह से लोगों के दर्द को समझते हैं, मदद करते हैं , हमारे लिए वह भी समझने की आवश्यकता है। हम तो कुछ ऐसे हालात में जी रहे हैं जहां दूसरों के दर्द को समझना तो दूर , हम उसे दर्द मानते ही नहीं , नकार देते हैं। जिन्हें उनकीं चिंता करनी है वे स्वयं अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हैं। शायद इसीलिए जीवन का शान्तिपूर्ण होना एक बहुत बड़ी अनिवार्यता है। बहुत से दुःख दर्द केवल मूलभूत व्यवस्था से से ठीक हो सकते हैं।
एक बार पुनः आपको ह्रदय से आभार और सादर धन्यवाद। सादर।
जनाब डॉ. विजय शंकर जी आदाब, आपकी ये कविता पढ़ कर बेसाख़्ता 'अमीर मीनाई' जी का ये शैर याद आ गया:-
'ख़ंजर चलें किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है'
दुनिया में ऐसे लोग कम ही होते हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं,दूसरों का दर्द महसूस कर सकते हैं,कहते हैं साहित्यकार दूसरों का दर्द महसूस कर लेते हैं,लेकिन ये क़ौल भी अब किताबों में ही पढ़ने को मिलता है,दुनिया इतनी व्यस्त हो गई है कि किसी के पास भी दूसरे के लिए समय नहीं है,ऐसे माहौल में आपकी ये कविता अपने शब्दों में बहुत सा दर्द समेटे हुए है,वो सारी पीड़ा जो एक इंसान में होना चाहिए उसका बयान कर रही है,बहुत ख़ूब वाह, इस शानदार कविता के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय डॉO छोटे लाल जी , आपकी पकड़ का ह्रदय से स्वागत है , आपका हार्दिक आभार एवं सादर धन्यवाद , शेष विवेचना हेतु डॉo उषा जी की टिप्पणी पर लिख ही चुका हूँ। सादर।
आदरणीय सुश्री उषा जी , आप इन चार पंक्तियों की गहराई तक पँहुचीं , स्वागत है। आपकी यह बात भी सही है कि हमें / लोगों को sympathy से empathy की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। दोनों ही शब्द ग्रीक भाषा के pathos शब्द से विकसित हुए हैं , अंगरेजी भाषा में sympathy शब्द सोलहवीं शताब्दी में आया और empathy शब्द उन्नीसवीं शताब्दी में। empathy शब्द कहीं अधिक व्यापकता का बोध कराता है , अतः उसका व्यवहारिक प्रयोग भी अधिक व्यापकता का परिचायक है और मानवता के लिए अधिक आवश्यक भी है।आपके विचारों का सादर स्वागत है , आपका आभार एवं अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद। सादर।
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी आपने चंद पंक्तियों में जबरदस्त भाव पिरो दिया मन प्रफुल्लित हो गया बहुत बहुत बधाई
आदरणीय विजय शंकर सर, आज सचमुच इस बात की ज़रूरत है की 'सिम्पैथी' से 'एम्पैथी' की ऒर रुख़ किया जाये। ये हो जाये तो आशा है लोगों के दुःख-दर्द काफ़ी कम हो जाएँगे। किसी का हृदय से इतना ही कह देना कि हम आपका दर्द समझते हैं, बहुत सुकून दे जाता है। सुंदर कविता के लिये बधाई स्वीकार करें। सादर।
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