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धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-3)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

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अंक - तीन

विकास के पूछने पर अली ने कहा- 'एड्स के मामले में भला मैं क्या बोल सकता हूँ?...........सच पूछो तो गाँव में इसका रहना उचित भी नहीं है I ' विकास ने रहमत अली को काफी ऊँच-नीच समझाया...........एड्स के साथ जी रहे लोगों के बारे में बताया.....इससे जुड़े मानवीय पक्षों को उसके सामने रखा .....नहीं बताया तो सिर्फ़ यह कि वह भी एड्स के साथ ही जी रहा है I विकास ने रहमत अली से अनुरोध किया कि एड्स के साथ जी रहे लोगों के पुर्नवास एवं सहायता की दिशा में स्वयं सेवी संस्थायें कारगर भूमिका निभा सकती हैं और रहमत इस तरह की संस्था का संचालन कर सकता है I विकास की इस बात पर रहमत उसकी तरफ देखते हुए बोला -'यदि तुम इस संस्था की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हो तो मुझे कोई एतराज नहीं है I ' अंधे को क्या चाहिए?........दो आँखे ..............विकास तन-मन-धन से संस्था के कामो में लग गया I रामलाल के भाई के पुर्नवास से ही संस्था का श्री गणेश हुआ I विकास की लग्न एवं मिहनत तथा रहमत अली की साख़ उसके अनुभव एवं समाज-सेवा के प्रति उसके समर्पण भाव के कारण एड्स के साथ जी रहे लोगों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में सकारात्मक के लक्षण दिखने लगे I

विकास को अपने बारे में अपनी माँ को बताने के लिए तब बाध्य हो जाना पड़ा, जब वह उस पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी I विकास की बातें सुनकर उसकी माँ को चक्कर आ गया I उन्होंने रोते हुए जब यह बात अपने पति भानु प्रताप चौधरी से कहा तो वह सर पकड़कर कर बैठ गए I ऐसी स्थिति-परिस्थिति में शायद पुरुष को अपने उत्तरदायित्व का बोध तक्षण होता है I स्वयं पर नियंत्रण करने का प्रयास करते हुए चौधरी साहेब ने अपनी पत्नी को समझाने के लहजे में हिदायत दी -'किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगनी चाहिए, अन्यथा अपना बेटा मौत से पहले ही मर जाएगा I ' फिर बुजुर्ग दंपत्ति अपने दिल पर पत्थर रखकर अपने बेटे को अधिक से अधिक खुश रखने का प्रयत्न करने लगे I चौधरी साहेब ने अपनी पत्नी को बता दिया था कि यह कोई छुआछुत की बीमारी नहीं है I विकास को आभास नहीं होना चाहिए कि यह जानने के बाद हमारे व्यवहार में कोई बदलाव आ गया है I विकास की माँ उसे अब अपने हाथों से खाना खिलाती,उसे घंटों अपने पास बिठा कर रखती और अपनी बुढ़ी आँखों से अपनी कोख की उस जवानी को, जिसकी कहानी का समापन नियति ने नियत कर दिया था, निहारती रहतीI

एक दिन रहमत अली विकास के घर सुबह-सुबह ही पहुँचा I .....................................................................

क्रमशः

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Comment by Er. Ambarish Srivastava on September 5, 2011 at 11:32pm

बहुत अच्छी कहानी लिखी आपने !बहुत बहुत बधाई आपको !  किसी भी परिस्थिति में इंसान को हार नहीं माननी चाहिए विकट से विकट स्थिति में भी इंसान को जीने के लिए कोई न कोई मिशन मिल ही जाता है ! :-)

Comment by Rash Bihari Ravi on August 12, 2011 at 1:23pm

bahut badhia kahani aage ja rha hain bhai ji

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