मिशन इज ओवर (कहानी )
लेखक -- सतीश मापतपुरी
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अंक - चार
एक दिन रहमत अली विकास के घर सुबह-सुबह ही पहुँचा I वह काफी खुश था I उसने विकास को बताया कि हमारी संस्था का नाम दूर-दूर तक फैल चुका है I कल देर शाम शहर से एक लेडी डॉक्टर स्वेच्छा से चिकित्सा-सेवा संस्था को देने के लिए यहाँ आ गयी हैं, उनका कहना है कि इस नेक काम में वह हमारे साथ हैं I रहमत का कहना था कि यदि एक डॉक्टर कुछ समझाये तो लोग आसानी से एतबार कर सकते हैं I रहमत की इस बात से विकास भी पूरी तरह सहमत था I डॉक्टर से मिलने के लिए विकास रहमत के साथ तुरंत चल पड़ा, लेकिन जब वह लेडी डॉक्टर से मिला तो उसके पैरों के नीचे से ज़मीन सरक गयी I ........वक़्त की आँधी एक बार फिर अतीत के पन्नों को फड़फड़ाने लगी........... सामने सुनीता खड़ी थी I दोनों एक दूसरे को देखकर हतप्रभ थे,पर रहमत अली पर यह जाहिर नहीं होने दिया कि दोनों पूर्व परिचित हैं............शिष्टाचार को प्राथमिकता देते हुए दोनों ने एक दूसरे को नमस्कार किया, पर एकांत मिलते ही विकास खुद को रोक नहीं पाया और सुनीता से पूछ बैठा --' तुम यहाँ?....गाँव में?...शहर में पली-बढ़ी, सुकुमार लड़की...यह किस रास्ते पर चल पड़ी हो?......तुम्हारी शादी हुयी?...तुम्हारे डैडी यहाँ आने...........I ' सुनीता ने बीच में ही टोकते हुए कहा--'सिर्फ तुम्ही बोलना जानते हो क्या?.........मैं शहर की हूँ..... गाँव में कैसे रहूँगी........मेरी शादी हुयी या नहीं..........I ' कहते-कहते क्षण भर को सुनीता ठहर गयी....स्थिर नज़रों से एक पल के लिए उसने विकास को देखा............पल दो पल के लिए दोनों की नज़रें आपस में मिलीं..........भाषा सिर्फ ज़ुबां की ही नहीं होती,नज़रों की भी अपनी भाषा होती है I एक पल में ही जानें कितनी बातें हो गयीं I दूसरे ही पल एक झटके से सुनीता ने अपनी नज़रे फेर ली और बीच में छोड़ी हुयी अपनी बात पर आ गयी I उसने विकास को धिक्कारते हुए कहा-'तुम तो अपना फरमान सुनाकर चल दिए..अपना पता- ठिकाना , कुछ तो नहीं बताया....... एक पल को भी यह नहीं सोचा कि किसी के अरमानों पर कुठाराघात करके जा रहे हो...........? तुम्हारे जाने की बात सुनकर मेरे दिल पर क्या ........I ' कहते -कहते सुनीता का गला रूँध गया I अपनी आँखों में बिन चाहे भी छलक आये अश्कों को छिपाने का असफल प्रयास करते हुए सुनीता ने कहा ' तुमने तो यह सब जानना भी जरुरी नहीं समझा........मैंने तो कभी सोचा भी न था कि हम दोनों फिर से एक दूसरे के सामने इस तरह से आ खड़े होंगे I ............ विकास,तुम्हें नहीं लगता ............ कि मुझे लेकर तुम्हें संजीदा होने का अब कोई हक नहीं? ................ अपनी ज़िन्दगी अपने ढँग से गुजारने का मुझे पूरा अधिकार है.......... मैं एक डॉक्टर हूँ.......... और एड्स के साथ जी रहे लोगों के लिए काम करने को अपने जीवन का मिशन बनाया है........I ' सामने से रहमत अली को आते देख सुनीता को बीच में ही चुप हो जाना पड़ा I ............... क्रमश:
Comment
बहुत अच्छी कहानी लिखी आपने !बहुत बहुत बधाई आपको ! किसी भी परिस्थिति में इंसान को हार नहीं माननी चाहिए विकट से विकट स्थिति में भी इंसान को जीने के लिए कोई न कोई मिशन मिल ही जाता है ! :-)
धन्यवाद गुरूजी
cliche - hackneyed opinion, वहीवहीपन.
कुछ क्लिशे है................
आदरणीय सौरभजी, कहानी पर टिपण्णी हेतु साधुवाद. आपकी टिपण्णी से निःसंदेह मैं लाभान्वित होता हूँ. "सॉरी सर" पर आपकी टिपण्णी का लाभ नहीं उठा पाया.उपरोक्त का मैं आशय नहीं समझ पाया हूँ . यदि अन्यथा न लें तो स्पष्ट करने की कृपा करें.
कहानी बढ़ रही है.. कुछ क्लिशे है. पर चलिये.
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