मुक्तक- 1
भला होता है वो कैसा जिसे सब प्यार कहते है
नही यह भी पता मुझको किसे सब यार कहते है
न जाना मैं कभी इनको न पहचाना कभी इनको
यही कारण मुझे सब आदमी बेकार कहते है
मुक्तक -2
नही होता अगर ये दिल तो हम भी शान से जीते
लड़ा कर जाम से हम जाम तुम्हारे साथ में पीते
मगर कमबख्त दिल मेरा हमेशा नाम ले उसका
भुलाने ही नही देता पलों को साथ जो बीते
मुक्तक -3
करू क्या काम दिन भर मै मुझे पत्नी बताती है
झुका कर के नज़र चलना मुझे हरदम सिखाती है
नज़र मेरी चली जाये अगर अपनी पड़ोसन पे
चला बेलन वही दिन में मुझे तारे दिखाती है
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
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भइया, आप कहाँ हैं ? कहाँ पहुँच गये ? आजकल आपकी उपस्थिति मंच पर भी कम हो गयी है.
सब शुभ होगा. हार्दिक शुभेच्छाएँ.
आदरणीयSaurabh Pandeyजी उत्साहवर्धन के लिए चरण स्पर्श है आज मैं जहॉं तक पहुँच पाया हूँ उसमें आपका आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन्ा मेरे साथ रहा है आपको चरण स्पर्श
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार एवं चरण स्पर्श, आप की रचनाछप चुकी है 6 जून को पुस्तक आते ही आपके पास भेज दिया जायेगा गा और उसके उपरान्त गहमर में होने वाले अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मेलन हेतु संम्पर्क करेंगें
आदरणीय narendrasinh chauhan जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार एवं नमन
आदरणीयSamar kabeer जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार एवं नमन
आदरणीयkrishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार एवं नमन
आदरणीय shikha kaushik जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार एवं नमन
आदरणीय शिज्जू शकूर जी उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार एवं नमन
आपकी रचनाओं में हुआ सुधार आश्वस्त करता है अखण्ड भाईजी कि आपका प्रयास सदिश है.
हार्दिक शुभकामनाएँ.
गहमरी जी
हास्स्य प्रधान मुक्तकों के लिए बधाई. मित्र आपके पत्रिका नहीं मिली और मेर्री कहानी का क्या हुआ ?
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