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महीना जून का पावन

महीना जून का पावन मुझे तो खूब है भाता

मगर इसका मुझे है ग़म हमेशा ये नही आता

बला बीबी टले इस माह नइहर वो चली जाती

सुबह से शाम तक करती परेशा सर वही खाती

यही ये माह है ऐसा खुशी जो साथ्‍ा में लाता

मगर इसका मुझे है ग़म हमेशा ये नही आता

महीना जून का पावन मुझे तो खूब है भाता

लड़ाता जाम विस्‍की के ऩज़र रखता पडोसन पे

न खाना मैं बनाता हूँ मगाता रोज होटल से

पिटाई भी नही होती जली रोटी नहीं खाता

मगर इसका मुझे है गम हमेशा ये नही आता

महीना जून का पावन मुझे तो खूब है भाता

सुबह से शाम बाते प्‍यार से वो फोन पे करती 

दिखाता प्यार मै झूठा,खुशी में आह वो भरती

कहूँ हरदम तुम्हारे बिन रहा मुझसे नही जाता

मगर इसका मुझे है गम हमेशा ये नही आता

महीना जून का पावन मुझे तो खूब है भाता

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by गिरिराज भंडारी on June 6, 2015 at 2:35pm

अति सुन्दर ! हार्दिक बधाई आपको , आ. अखंड भाई ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2015 at 12:30pm

बढ़िया है  गहमरी जी .

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 5, 2015 at 11:51am

क्या बात है आ० अखंड जी!हास्य से परिपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति!हार्दिक बधाई!

Comment by Samar kabeer on June 4, 2015 at 11:22pm
जनाब अखंड गहमारी जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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