For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दवा है दर्द की कह कर पिला देगा मुझे कोई

गिरा कर अश्क फिर अपने बहा देगा मुझे कोई

सिख़ाओ मत मुझे जीना न है अब जिन्‍दगी प्‍यारी

दिखा कर प्‍यार के सपने जला देगा मुझे कोई

गमो की राह अच्‍छी है न आता पास दुश्‍मन भी

डगर सुख की चले तो बददुआ देगा मुझे कोई

निराले खेल दुनिया के कभी खेला अगर मैने

न दोगे साथ मेरा तो हरा देगा मुझे कोई

न है हर फूल में काँटे हमेशा सोचता हूँ मै

न बदला सोच अपना तो मिटा देगा मुझे कोई।

अखंड गहमरी मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 587

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Akhand Gahmari on July 12, 2015 at 12:41pm

आदरणीय मिथिलेस वामनकर जी, आदरणीय सौरभ पाडे़ जी सुझाव एवं मागदर्शन के लिए नमन आपके बताये रास्‍ते पर चलने का पूरा प्रयास करूँगा

Comment by Akhand Gahmari on July 12, 2015 at 12:40pm

अादणीय मनोज कुमार जी, आदणीया डा गोपाल नारायण श्रीवास्‍तवा जी, आदणीय गुरूवर गिरिराज भंडारी जी, आदरणीय नरेन्‍द्र सिन्‍हा जी, आप सभी को नमन


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 12:41am

प्रयासरत रहें, अखण्ड भाई. आपमें बहुत सुधार हुआ है लेकिन यह भी सत्य है कि मीलों चलना है. 

 

निराले खेल दुनिया के कभी खेला अगर मैने.. निराले खेल दुनिया के कभी खेले अगर मैने

 

ऐसे ही अंतिम शेर के दोनों मिसरों मॆं कायदे का सम्बन्ध नहीं बन पाया है. व्याकरण सम्बन्धी अशुद्धि को आ. मिथिलॆश भाई बता चुके हैं.

शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 28, 2015 at 4:13am

आदरणीय अखंड जी, बहुत बढ़िया गज़ल हुई है , सभी अशआर बढ़िया हैं । इस बेहतरीन गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

न है हर फूल में काँटे हमेशा सोचता हूँ मै

न बदला सोच अपना तो मिटा देगा मुझे कोई। .....अपनी सोच बदली जाती है ......इसलिए.... न बदली सोच अपनी तो मिटा देगा मुझे कोई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 9:51pm

आदरणीय अखंड भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , सभी शे र बढ़िया हैं । आपको हार्दिक बधाइयाँ गज़ल के लिये ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 24, 2015 at 7:54pm

achchhe hai gajal , Gahmaree jee

Comment by narendrasinh chauhan on June 24, 2015 at 5:17pm

दवा है दर्द की कह कर पिला देगा मुझे कोई

गिरा कर अश्क फिर अपने बहा देगा मुझे कोई

लाजवाब , बहुत खूब सुन्दर रचना

Comment by Aditya Kumar on June 24, 2015 at 5:11pm

सुन्दर सुन्दर सुन्दर आदरणीय  श्री   Akhand Gahmari जी .

Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 4:58pm

आदरणीय अखंड गहमरी जी इस सुन्दर रचना पर बधाई ,  सादर ।

दवा है दर्द की कह कर पिला देगा मुझे कोई

गिरा कर अश्क फिर अपने बहा देगा मुझे कोई.....सुन्दर   !

Comment by मनोज अहसास on June 24, 2015 at 4:10pm
प्रणाम सर
बहुत खूब रचना
बधाई
अंतिम शेर की बात समझ नहीं आई
कृपिया समझा दे
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
8 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
19 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service