For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मात्रा विन्यास
1222 1222 1222 1222

लगे वो जल परी जैसी, अधर मधु हास बिखराती।
वो तरुणी वारुणी जैसी, नशा नस नस में महकाती।
लगे ज्यों दिव्य मूरत सी, रचा खुद ब्रह्म ने जिसको।
हुई मदहोश महफिल पर, तुरत ही ताजगी आती।

अलग है बात कुछ तुझमें, नहीं हर एक में मिलती।
भरी तू दोपहर जैसी, सुहानी शाम भी लगती।
निशा का मस्त आंचल तू, सुबह की ताजगी तुझमें।
स्वयं शृंगार कर उपमा, तुझे है आरती करती।

है कैसा हाल अब उनका, खबर कोई सुनाये तो।
तड़प मन की मेरे जाकर, कोई उनको बताये तो।
दरस की आस ले मन में, पड़ा मैं द्वार पर उनके।
झलक बस एक दिलवर की, कोई मुझको दिखाये तो।

तेरे दीदार में जाना, न जाने बात कैसी है।
तू जैसे जाम रिंदों का, सुबह के चाय जैसी है।
तृषा मन की बुझी मेरे, तुम्हारी इक झलक पाकर।
मैं चातक प्यास से व्याकुल, तू स्वाती बूंद जैसी है।

इबादत हो अगर सच्ची, प्रकट तो ईश हो जाते।
पुकारा था उन्हें दिल से, तो क्योंकर वो नहीं आते।
तड़प धरती की सच्ची थी, समंदर में दिखा अंबर।
कि यूं ही दरम्यां दिल के, नजर दिलवर मेरे आते।

शुकूनोचैन छीना है, तुम्हारी याद ने प्रियवर।
चुरायी नींद आंखों से, तेरे अंदाज ने प्रियवर।
तू जीनत है अमानत है, अजब नायाब मोती है।
भरा है रंग जीवन में, हमारे आप ने प्रियवर।

मौलिक वह अप्रकाशित

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 10, 2017 at 6:38pm
आदरणीय समर कबीर सर! मुक्तक पर अपना बहुमूल्य समय देने के लिये आपका भूरिशः आभार। आपने विस्तृत रूप से दोषों की तरफ संकेत किया है। उसे दूर करने की कोशिश करता हूँ। सादर
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on July 10, 2017 at 6:36pm
आदरणीया प्राची दीदी! मुक्तक पर अपना बहुमूल्य समय देने के लिये आपका भूरिशः आभार। जो कुछ दोष रह गया है उसे दूर करने की कोशिश करता हूँ।
Comment by Samar kabeer on July 7, 2017 at 3:20pm
जनाब त्रिपाठी जी आदाब,मुक्तक लिखने का अच्छा प्रयास हुआ है,इसके लिए बधाई स्वीकार करें ।

पहले मुक्तक की दूसरी पंक्ति में 'नशा नस नस में महकाती',नशा महकाती प्रयोग सही नहीं लगता,'नशा नस नस में दौड़ाती होना चाहिये था ।

दूसरे मुक्तक में 'मिलती','लगती','करती' की तुकान्तता सही नहीं है ।

चौथे मुक्तक में 'जाना'को "जानाँ"कीजिये,और इस मुक्तक की दूसरी और चौथी पंक्ति में 'जैसी'के साथ 'जैसी'की तुकान्तता सही नहीं है।
इसी तरह पांचवें मुक्तक में भी तुकान्तता सही नहीं है ।

आख़री मुक्तक में तुकान्तता है ही नहीं,बस चारो पंक्तियां अलग अलग हैं,दूसरी बात ये कि पहली पंक्ति में 'शुकूनो चेन' आपने ग़लत लिखा है इसे इस तरह लिखिये "सुकून-ओ-चेन",'तू जीनत'नहीं "तू ज़ीनत" और तीसरी पंक्ति में 'तू' और चौथी में 'आप'इसे उर्दू में शुतरगुर्बा का दोष कहते हैं ।
अभी आपको बहुत अभ्यास की ज़रूरत है,इस सम्बन्ध में मंच पर मौजूद आलेख पढिये ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 7, 2017 at 2:57pm

सभी मुक्तक बहुत सुन्दर हुए है प्रिय विन्ध्येश्वरी भाई 

बहुत खूबसूरत सौम्य शृंगार का निर्वहन सबमें 

बस अंतिम मुक्तक में काफिये फिर से देख लीजियेगा 

मेरी दिली बधाई इन मुक्तकों पर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service