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आखिरी ख़्वाहिश

देख लोगो को रोते हुए

ज़ोर से लाश एक हँस पड़ी

जीते जी तो जीने दिया ना

गुस्से में वो बिफर पड़ी ||

खरी-खोटी मुझे रोज सुनाते

तनिक भी ना परवाह थी

दिल पे मेरी क्या गुजरती

घुट-घुट के मैं रोती थी ||

खुदा बक्शे अगर, जिंदगी

औकात दिखा दे अभी सभी

घड़ियाल से आँसू जो बहाते

असलियत आ जाए सामने अभी ||

भूल जायेंगें कुछ ही दिन में

याद ना आयें मेरी कभी

अच्छी-बुरी मेरी बातें कर

सहानुभूति पाएंगें सभी ||

छोड़ चली मैं अहम की दुनियां

ईश्वर के द्वार में मैं चली

खुदा के चरण में स्थान मिले

आखिरी ख़्वाहिश है ये मेरी ||

“मौलिक व अप्रकाशित”

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Comment by PHOOL SINGH on February 11, 2020 at 9:18am

कबीर साहब आपका कोटि कोटि धन्यवाद

Comment by Samar kabeer on February 8, 2020 at 2:32pm

जनाब फूल सिंह जी आदाब, अच्छी रचना हुई,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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