जीवन का कर्फ्यू
रोजमर्रा की तरह टहलते हुये रामलाल उद्यान में गोपाल से मिला तो उसके चेहरे की झाईयां से झलकती खुशी कुछ और ही बयां कर रही थी।इससे पहले मैं कुछ पूछता कि उसने कहा, 'यार,कल जैसा दिन गुजारे जमाना हो गया।'
'पर यार कल तो कर्फ्यू लगा था।न किसी से मिलना-जुलना हुआ।कितना बोरियत भरा दिन था?'
'तेरे लिए था।पर इसने मेरी जिन्दगी के कर्फ्यू को हटा दिया।'
'कुछ समझा नही?'प्रश्न भरी निगाह से रामलाल ने गोपाल की तरफ देखकर कहा।
गोपाल ने पास पङी बेंच पर उससे बैठने का इशारा किया।उसके कंधे पर आत्मीयता से हाथ रखते हुये कहा, 'कल घर,घर जैसा लग रहा था....नही तो....।'
बीच में टोकते हुये कहा, 'ऐसा क्या हो गया? तेरा कितना ख्याल रखते हैं सब।'
'हां, सो तो हैं। दिनभर फोन से खबर लेते रहते हैं बहू-बेटे।खाना खाया कि नही,दवाई समय से ले ली।कोई परेशानी तो नहीं। सुबह-शाम हालचाल पूछते हैं,सब अपनी जिन्दगी में मस्त है। पर कल पूरे दिन जो सबके साथ समय बिताया।आस-पास चहकते बच्चों से मकान ,घर बन गया था। कितने अर्से बाद साथ में बैठकर बातें की।'कहते-कहते गोपाल की ऑखों से आंसू बहने लगे,गला रूंध गया।
तसल्ली देते हुये उसका हाथ दबाया।उसकी बात सुन रामलाल की ऑखें भी नम हो गई। सच तो कह रहा हैं, सब जगह कर्फ्यू लगा था,पर कल उसके जीवन का कर्फ्यू हट गया था।ठंडी पङी भावनाओं को संवेदनाओं ने,एहसासों ने गर्माहट दे दी थी।
'
मौलिक व अप्रकाशित हैं
बबीता गुप्ता
Comment
मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,अच्छी रचना है,बधाई स्वीकार करें ।
निवेदन है कि रचना के साथ उसकी विधा भी लिखा करें ।
बहुत खूब, मौज विषय है । बधाई हो
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