एक तन्हा ग़ज़ल रहा हूँ मैं
उसकी यादों में चल रहा हूँ मैं (1)
तेरी यादों में ज़िन्दगी जी कर,
ज़िन्दगी को मसल रहा हूँ मैं (2)
कैसी हो ज़िन्दगी बताओ तुम?
तेरे ग़म में उबल रहा हूँ मैं (3)
प्यार में इक महीन सा काग़ज़,
भीग आँसू से गल रहा हूँ मैं (4)
तुम मुझे देख मुस्कुराते हो,
सारी दुनिया को खल रहा हूँ मैं (5)
वो मेरी राह में खड़ी होगी ,
इसलिए तेज चल रहा हूँ मैं (6)
दोपहर का उमस भरा मौसम,
धीरे धीरे बदल रहा हूँ मैं (7)
दूरियों का असर बताता हूँ ,
वो सुलगते हैं,जल रहा हूँ मैं (8)
हर जगह तुम दिखाई देते हो,
इस खुशी में उछल रहा हूँ मैं (9)
चाँद,सूरज,हवा तेरे चेहरे,
तेरे चेहरों में पल रहा हूँ मैं (10)
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुरेन्द्र नाथ सिंह जी , रचना को पढ़कर बधाई दी है ।
आपकी सक्रियता को नमन है ।
आद0 सूबे सिंह सुजान जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।
समर कबीर साहब बहुत बहुत शुक्रिया जनाब ।
आपने ठीक ध्यान दिलाया है ।यह एडिट हो जाएगा
जनाब सूबे सिंह सुजान जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
'कैसी हो ज़िन्दगी बताओ तुम?
तेरे ग़म में उबल रहा हूँ मैं'
इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,ऊला यूँ कर लें तो दोष निकल जाएगा:-
'कैसी है ज़िन्दगी बता मुझको'
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