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मानन्द-ए-ज़माना अभी शातिर नहीं हैं हम
लोगों की तरह झूठ के नासिर नहीं हैं हम
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नफ़रत के अलमदार ये अच्छे से समझ लें
ये मुल्क हमारा है मुहाज़िर नहीं हैं हम
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हम सिर्फ़ मुहब्बत को समझते हैं इबादत
बस यार ख़ुदा अपना है काफ़िर नहीं हैं हम
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जो दिल में रहे अपने वही रहता लबों पे
पोशीदगी-ए-राज़ में माहिर नहीं हैं हम
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दिखते हैं अगर रुख़ पे तबस्सुम के मनाज़िर
ग़ायब करें ग़म ऐसे भी साहिर नहीं हैं हम
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होते हैं फ़क़त क़ैद मुहब्बत के क़फ़स में
दानों पे जो ललचाये वो ताइर नहीं हैं हम
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गिर्दाब से बाहर को निकलना हैं गए सीख
मौजों से भी अनजान मुसाफ़िर नहीं हैं हम
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हालात से कुछ ऐसे सबक़ सीखे हैं हमने
ग़म हो कि ख़ुशी होते मुतअस्सिर नहीं हैं हम
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सौदा न हमारा करें हरगिज़ यूँ 'तुरंत'आप
इंसान हैं सोना कि जवाहिर नहीं हैं हम
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
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