For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमें न चाहत ही चाँद की है न तारों से है लगाव अपना(१०१ )

( 121  22  121  22  121  22  121  22  )

.

हमें न चाहत ही चाँद की है न तारों से है लगाव अपना

हमें फ़लक की भी  क्या ज़रूरत ज़मीन से है  जुड़ाव अपना

**

जहाँ में अपनी किसी से यारो न दुश्मनी और न दोस्ती है

न कोई दिल में किसी से नफ़रत न है किसी से दुराव अपना | 

**

फ़रोख्त होगी कभी हमारी  ख़याल कोई  न लाये  दिल में

अमोल हैं हम कोई जहाँ में  करेगा क्या मोलभाव अपना

**

कभी किसी से जुदा हुए तब मिला था ज़ख़्मों का एक तोहफ़ा

उसी  को सहला रहे हैं अब तक भरा नहीं है वो घाव अपना

**

निचोड़ है ज़िंदगी का अपनी करे मुहब्बत कभी न कोई

न मानते हैं तो आप जानें दिया हैं हमने  सुझाव अपना

**

अज़ल से अब तक कभी जहाँ में है एक सच जो कभी न बदला

अमीर हो या ग़रीब कोई क़ज़ा है अंतिम पड़ाव अपना

**

नहीं गवारा हमारे ग़म से हो ग़ैर कोई कभी परेशां

सजा के रुख़ पर हसीं तबस्सुम  भगाते हैं हम  तनाव अपना

**

कभी अमीरी कभी ग़रीबी चखे हैं दोनों के स्वाद हमने

मगर है फ़ितरत फ़क़ीर जैसी रहा उसी से निभाव अपना 

**

'तुरंत ' अपनी ग़ज़ल में फ़ाज़िल न ढूंढें कोई  कभी  तग़ज़्ज़ुल

सपाट कह कर पका रहे हैं फ़क़त  ख़याली पुलाव  अपना

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 20, 2020 at 6:30pm

भाई सालिक गणवीर  जी इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार  एवं नमन | 

Comment by सालिक गणवीर on May 20, 2020 at 6:25pm
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी जी
आदाब
एक और उम्दा ग़ज़ल के दिली मुबारकबाद.
उसी को सहला रहे हैं अब तक भरा नहीं है जो घाव अपना.. वाह
Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 20, 2020 at 5:30pm

 सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी , इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार  एवं नमन | 

Comment by नाथ सोनांचली on May 20, 2020 at 4:14pm

आद0 गिरधर सिंह गहलोत तुरन्त जी सादर अभिवादन। बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है। बहुत खूब। शेर दर शेर मुबारकबाद कुबूल फरमाएं

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 20, 2020 at 3:36pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी, इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार | 

Comment by TEJ VEER SINGH on May 20, 2020 at 12:05pm

हार्दिक बधाई आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' जी। बेहतरीन गज़ल।

कभी किसी से जुदा हुए तब मिला था ज़ख़्मों का एक तोहफ़ा

उसी  को सहला रहे हैं अब तक भरा नहीं है वो घाव अपना

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 19, 2020 at 2:45pm

भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी , इस स्नेहिल और उत्साह बढ़ाती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार एवं नमन | 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 19, 2020 at 12:44pm

आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 18, 2020 at 3:42pm

आदरणीय Samar kabeer  साहेब ,आदाब , 

आपकी क़ीमती दाद मेरे लिए वाइस-ए-फ़ख्र है मोहतरम  | नवाज़िश-ओ-करम का दिल से शुक्रिया | मनमुटाव+अर  वस्ल से बह्र तो बैठ रही है , अगर गलत है तो इसे इस तरह पढ़ें  | न कोई दिल में है मनमुटाव और नहीं किसी से दुराव अपना =न कोई दिल में किसी से नफ़रत न है किसी से दुराव अपना | 

Comment by Samar kabeer on May 18, 2020 at 3:08pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'न कोई दिल में है मनमुटाव और नहीं किसी से दुराव अपना'

इस मिसरे की बह्र चेक कर लें म

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service