For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दौड़ अपनी-अपनी (लघु- कथा)

कल मानव और विभा की शादी के दस वर्ष पूरे हो रहे थे। सो इस बार की मैरिज एनीवर्सरी विशेष थी। दाम्पत्य जीवन में कोई अभाव प्रकटतः तो विभा को नहीं था। दो बच्चे, बेटी मानसी और बेटा विशेष प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे थे। विभा एम, ए. बी. एड. थी, मिजाज़ से हाउस वाइफ थी। सारा दिन चौका बर्तन, सफाई, बच्चों की सुख-सविधा में कोई कमी न रहे इसमें निकल जाता था । हाँ मानव से ज़रूर उसे शिकायत थी। मानव एक कस्बे के महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे। उनका ज्यादातर समय अध्ययन और अध्यापन में ही निकल जाता और बचता तो दोनों बच्चों के होम-वर्क कराने में निकल जाता था। रविवार की छुट्टी विभिन्न परियोजनाओं में उनके काॅलेज को विश्व विद्यालय अथवा यू. जी. सी. से सभी गान्ट्स मिल सके, प्रोजेक्ट तैयार करने मे लग जाता था । कभी भाग्य से थोड़ा अवकाश भी मिलता तो प्राचार्य यह पूछने के लिए आ धमकते कि अमुक प्रोजेक्ट पूरा हो गया अथवा नही । कभी- कभी तो स्टूडैन्ट्स अपनी व्यक्तिगत समस्याएं लेकर आ पहुँचते तो और दिक्कत हो जाती।
" मानव के पास बस उस के लिए ही समय नहीं था, विभा सोच रही थी, " और, अब जनाब कई हजार रुपये शादी की दसवीं वर्ष-गाँठ की औपचारिकता पर फूँकने जा रहे थे। छी...ऐसे आडम्बर पर..." ,.उसे घिन आने लगी थी। सोचते-सोचते कब विभा की आँख लग गयी उसे पता ही नहीं चला। सुबह जब उसने आँखें खोली तो मानव उसे झिंझोड़ रहे थे।" अरे उठोगी नहीं क्या, आठ बज चुके है। तुम्हें तो पता है कितनी तैयारिया करनी है,  कितने काम करने को हैं।" विभा का असन्तोष गुस्सा बनकर फूट निकला,
 शादी की वर्ष-गाँठ के लिए इतनी चिन्ता और जिसे दस साल पहले गाँठ बाँधकर लाए थे, उस से भी कभी पूछा, विभा कैसी हो, तुम उदास क्यों रहती हो। बस वक्त-ज़रूरत बाँहों में भरा और भोग लिया। हरम की दासी हूँ, तुम्हारी या रखैल बताओ तो जरा।"
मानव को काटो तो खून नही...... पहली बार आज उसे अहसास हुआ । उससे अब तक बहुत बड़ी चूक हो  रही थी। उसने आगे बढ़कर विभा को बाँहों में समेट लिया, " आइ लव यू मोस्ट, माई डियर !"
अब विभा की आँखों से गंगा-जमुना एक साथ बह रहीं थी।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 421

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2020 at 7:47am

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Chetan Prakash on December 4, 2020 at 7:50pm

 मोहतरम जनाब, समर कबीर साहब, आदाब, आपने लघुकथा " दौड़ अपनी अपनी" तक पहुँचने की ज़हमत की, इसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। लघु कथा को आपने सराहा, अच्छा लगा। कृपा बनाएँ रखे, आदरणीय !

Comment by Samar kabeer on December 4, 2020 at 3:45pm

जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई स्वीकार करें 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"नववर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं समस्त ओबीओ परिवार को। प्रयासरत हैं लेखन और सहभागिता हेतु।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

नवगीत : सूर्य के दस्तक लगाना // सौरभ

सूर्य के दस्तक लगाना देखना सोया हुआ है व्यक्त होने की जगह क्यों शब्द लुंठित जिस समय जग अर्थ ’नव’…See More
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
Monday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
Monday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
Monday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
Sunday

© 2026   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service