221 2121 1221 212
1
हमसे शगुफ़्तगी की तमन्ना करे कोई
अब और दर्द देने न आया करे कोई
2
आकर क़रीब इश्क़ जताया करे कोई
सच्चा नहीं तो झूठा ही वादा करे कोई
3
करवट बदलने से भी कहाँ नींद आएगी
जब आँख से ही ख़्वाब चुराया करे कोई
4
जो राज़ को भी राज़ बना कर न रख सके
उस आदमी से दोस्ती भी क्या करे कोई
5
आज़ाद फ़िक्र ए आशियाँ से हो चुके हैं हम
तूफ़ान अब हवा में न लाया करे कोई
6
'निर्मल' बदल के देख ले जीने के रास्ते
ऐसा न हो तू बाद में शिकवा करे कोई
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सर्, सादर नमस्कार।
हाँ जी सर्, फिर से कोशिश करती हूँ।
//ख़्वाबों में रोज़ रात को आया करे कोई
हौले से हाल दिल का सुनाया करे कोई//
दोनों मिसरों में 'या' की क़ैद हो रही है ।
आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। सर् यह मतला क्या सहीह है ?
221 2121 1221 212
ख़्वाबों में रोज़ रात को आया करे कोई
हौले से हाल दिल का सुनाया करे कोई
आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर् हौसला बढ़ाने के लिए आपकी आभारी हूँ।सर् मतला सुधार कर दिखाती हूँ।
मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखें ।
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