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रस्मो- रिवाज बन गयी पहचान हो गयी
वो दिलरुबा थी मेरी जो भगवान हो गयी
मक़तल बना है शहर वो रफ्तार ज़िन्दगी,
मुश्किल हुई है जीस्त कि श्मशान हो गयी
हर शख्स वो अकेला ही दुनिया में आजकल,
क्या वो करें जो कह सकें गुलदान हो गयी
सुन राजदाँ बहुत हुई बेज़ार ज़िन्दगी,
कासिद नहीं आया जबाँ कान हो गयी
जाहिल बने रईस वो हक़दार देश के,
अब हार-जीत उनकी खुदा शान हो गयी
आदाब हो गया उन्हें 'चेतन' अभी सनम,
हमराह ज़िन्दगी जहाँ जज़मान हो गयी
मौलिक एवं अप्रकाशित
प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'
Comment
आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रस्तुत प्रयास की शुभकामनाएँ.
जय-जय
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