आत्म घाती लोग - लघुकथा -
मेरे मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर दीन दयाल का नाम था। मगर दीन दयाल का स्वर्गवास हुए तो दो साल हो गये। उसके परिवार ने तो कभी भी याद ही नहीं किया। आज अचानक कैसे याद आ गई।
मैंने मोबाइल उठाया।
"हैलो अंकल, मैं पवन बोल रहा हूँ।”
“हाँ बोल पवन, आज कैसे याद किया?"
"कुछ नहीं अंकल, आपकी याद आ गयी। कैसे हैं आप?”
"मैं ठीक हूँ बेटा। तुम लोग कैसे हो?”
"सब ठीक हैं अंकल। आपसे एक मदद चाहिये थी।”
"कैसी मदद बेटा?”
"कुछ पैसे चाहिये थे।"
उसकी बात सुनते ही मेरे दिमाग में कुछ साल पुरानी एक घटना याद आ गयी। दीन दयाल भी अकसर पैसे मांगता रहता था।
हम दोनों एक ही विभाग में थे। तनख्वाह भी बराबर ही थी। मेरा परिवार बड़ा था। इसके बावजूद भी मैंने कभी किसी के आगे हाथ नहीं पसारे ।मेरा मानना था कि उधार प्रेम की कैंची होती है। उधार लेना और देना दोनों ही संबंध बिगाड़ते हैं।
दीन दयाल का परिवार तो बहुत छोटा था। पति पत्नी और एक बेटा। कुल तीन सदस्य। लेकिन उसको शराब पीने की बुरी लत थी।वह भी रोज। इसलिये हमेशा हाथ पसारता रहता था।
एक दिन मैंने उसे समझाने के उद्देश्य से सलाह देने की कोशिश की,"देख भाई दीन दयाल, रोज रोज उधार लेकर दारू पीना ठीक नहीं है।यह सेहत भी खराब कर देगी और आर्थिक रूप से भी कमजोर करेगी।”
मेरी बात पर वह उखड़ गया,"देख भाई, तू मेरा दोस्त है इसका मतलब यह नहीं कि तू मेरे हर मामले में टाँग अड़ाये।”
"अरे यार तू तो बुरा मान गया।”
"नहीं भाई, मैं तेरी चिंता समझता हूँ। तुझे अपने पैसों की चिंता है। मैंने सब हिसाब मेरी डायरी में लिख रखा है। और मैंने अपने बेटे पवन से भी कह रखा है कि मुझे कुछ हो जाए तो तेरे पैसे जिम्मेदारी से लौटा दे।"
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था। एक दिन नशे में स्कूटर किसी की कार से टकरा दिया। और वह चल बसा।
हम सब ने भाग दौड़ कर उसके बेटे को उसकी जगह नौकरी दिला दी।
बाद में मुझे पता चला कि उसके नशेबाज दोस्तों ने उसके बेटे को भी अपनी मंडली में शामिल कर लिया।
मैंने तब से उससे दूरी बना ली।
आज उसका फोन आने पर सोचा कि इसे भी कुछ नसीहत देने की कोशिश करूं, शायद सुधर जाए, "पवन, तुम्हारे पापा ने भी मुझसे कुछ उधार लिया था। तुम्हें कुछ बताया था क्या?”
उधर से कोई उत्तर नहीं मिला तो मैंने बात आगे बढ़ाई,"पवन, मैंने सुना है कि तुम भी दीन दयाल के पद चिन्हों पर चल रहे हो?"
उधर से तुरंत फोन कट गया।
मौलिक, अप्रकाशित एवं अप्रसारित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । सुंदर समसामयिक कथा हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online