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अंजाना सफर तनहाई का डेरा
उदासी का दिल मे था उसके बसेरा
साँवली सी आंखो पर पालको का घेरा
भुला नहीं मैं वो चमकता सा चेहरा

आंखे भरी थी और लब सील चुके थे
दगा उसके सीने मे घर कर चुके थे
था कहना बहूत कुछ उसको भी लेकिन
धोखे के डर से वो लफ्ज जम चुके थे

हाले दिल चेहरे पर दिखता था यू हीं
के ग़म को छुपाने की कोशिश नहीं थी
दिल चाहता तो था संग उसके चलना
मगर साथ चलने की कोशिश नहीं थी

कहा कुछ नहीं पर समझा दिया सब
ना बाकी रहा था कुछ भी कहीं अब
बेबस उस हंसी की होठों पर रख के
वो फिरती रहेगी उदासी मे कब तक

घड़ी दो घड़ी की वो हम सफर थी
बस चंद लम्हो की वो राहे गुज़र थी
थी अपनी भी मंज़िल जूदा उससे लेकिन
वो यादों मे रहने की ज़िद कर चुकी थी

थी रोने की कोशिश पुरजोर उसकी
साँसे भी चलने को राजी नहीं थी
होंठ काँपते थे कुछ इस तरह से
आंखो से आँसू बहने लगी थी

आंखो से मेरी जो उसकी आँखे लड़ी तो
दर्द उसके दि ल सब छलका गयी वो
गलत था वो दिलबर जिसे चाहा था उसने
संगत को अपने परख न सकी वो

"मौलिक व अप्रकाशित"

अमन सिन्हा 

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Comment

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Comment by AMAN SINHA on September 7, 2021 at 9:33am

@समीर कबीर सहब, 

मैने तो बस एक कोशिश की है। आपको अच्छी लगी उसका धन्यवाद। अगर आप लोग इसी तरह से हौसला बढाते रहे तो एक दिन अच्छा लिखना जरूर सीख जाउंगा। 

Comment by Samar kabeer on September 6, 2021 at 12:18pm

जनाब अमन सिन्हा जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

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