वज़्न -1212 1122 1212 22/112
मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं
गिरा के झोपड़ी वो बस्तियाँ बनाते हैं
ये आ'ला ज़र्फ़ हैं कैसे, बुलंदी पाते ही
उन्हें गिराते हैं जो सीढ़ियाँ बनाते हैं
है भूख इतनी बड़ी अब कि छोटे बच्चे भी
किताब छोड़ चुके बीड़ियाँ बनाते हैं
ग़िज़ा जहान में उनको नहीं मयस्सर क्यों
जो फ़स्ल उगा के यहाँ रोटियाँ बनाते हैं
उन्हें नसीब ने घर जाने क्यों दिया ही नहीं
सभी के वास्ते जो आशियाँ बनाते हैं
मदद के नाम पे मा'ज़ूर का उड़ा के मज़ाक़
ख़बर-नवीस यहाँ सुर्ख़ियाँ बनाते हैं
है 'आरज़ू' न हों नज़दीक वो किसी के भी
दिलों के दरमियाँ जो दूरियाँ बनाते हैं
-©अंजुमन 'आरज़ू'
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. आरज़ू जी,
ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है..
मतला बहुत कमज़ोर लग रहा है..
झोपड़ी टूट के बस्ती कैसे बन सकती है.. ??
शायद जल्दबाज़ी में कही हुई ग़ज़ल है..
रचते रहिये..बधाई
मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर साहब आदाब, ग़ज़ल तक पहुंचने और खूबसूरत इस्लाह के लिए तहे दिल से शुक्रिया सुधार की कोशिश करती हूं
उस्ताद मोहतरम समर कबीर जी आदाब, ग़ज़ल तक पहुंचने और खूबसूरत इस्लाह के लिए तहे दिल से शुक्रिया, सुधार की कोशिश करती हूं
मुहतरमा अंजुमन 'आरज़ू' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
'मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं'
आसानियाँ बनाई नहीं जातीं, ग़ौर करें ।
'है भूख इतनी बड़ी अब भी कि छोटे बच्चे'
ये मिसरा बह्र में नहीं,सुधार का प्रयास करें ।
'ग़िज़ा जहान में उनको है ला-मयस्सर क्यों'
इस मिसरे का शिल्प और वाक्य विन्यास ठीक नहीं,यूँ कर लें:-
'ग़िज़ा जहान में उनको नहीं मयस्सर क्यों'
मुहतरमा अंजुमन 'आरज़ू' साहिबा आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।
'मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं
लगा के आग वही बस्तियाँ बनाते हैं' मतले के मिसरों में रब्त का अभाव है, सानी मिसरे में क़ाफ़िया रदीफ़ से इन्साफ़ नहीं कर रहा है, ग़ौर फ़रमाएं... 'लगा के आग वही बस्तियाँ जलाते हैं' हो रहा है।
'है भूख इतनी बड़ी अब भी कि छोटे बच्चे' ये मिसरा बह्र में नहीं है, वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं है ....
'है भूख इतनी बड़ी अब कि छोटे बच्चे भी' करने से बह्र और शिल्प ठीक हो जाएंगे।
'ग़िज़ा जहान में उनको है ला-मयस्सर क्यों' 'नहीं' के वज़्न पर 'है ला' यहाँ मुनासिब नहीं है, देखियेेगा....
'ग़िज़ा जहान में उनको नहीं मयस्सर क्यों' (विकल्प मौजूद हो तो मात्रा गिराने से बचनाा चाहिए)
'उन्हें नसीब ने घर जाने क्यों दिया ही नहीं
सभी के वास्ते जो आशियाँ बनाते हैं'. इस शे'र का भाव स्पष्ट नहीं है। सादर।
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