For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं

वज़्न -1212 1122 1212 22/112

मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं
गिरा के झोपड़ी वो बस्तियाँ बनाते हैं

ये आ'ला ज़र्फ़ हैं कैसे, बुलंदी पाते ही
उन्हें गिराते हैं जो सीढ़ियाँ बनाते हैं

है भूख इतनी बड़ी अब कि छोटे बच्चे भी
किताब छोड़ चुके बीड़ियाँ बनाते हैं

ग़िज़ा जहान में उनको नहीं मयस्सर क्यों
जो फ़स्ल उगा के यहाँ रोटियाँ बनाते हैं

उन्हें नसीब ने घर जाने क्यों दिया ही नहीं
सभी के वास्ते जो आशियाँ बनाते हैं

मदद के नाम पे मा'ज़ूर का उड़ा के मज़ाक़
ख़बर-नवीस यहाँ सुर्ख़ियाँ बनाते हैं

है 'आरज़ू' न हों नज़दीक वो किसी के भी
दिलों के दरमियाँ जो दूरियाँ बनाते हैं

-©अंजुमन 'आरज़ू'

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 530

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 6, 2021 at 6:17pm

आ. आरज़ू जी,

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है..
मतला बहुत कमज़ोर लग रहा है..
झोपड़ी टूट के बस्ती कैसे बन सकती है.. ??
शायद जल्दबाज़ी में कही हुई ग़ज़ल है..
रचते रहिये..बधाई 

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on November 3, 2021 at 12:07pm

 मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर साहब आदाब, ग़ज़ल तक पहुंचने और खूबसूरत इस्लाह के लिए तहे दिल से शुक्रिया सुधार की कोशिश करती हूं

Comment by Anjuman Mansury 'Arzoo' on November 3, 2021 at 12:06pm

उस्ताद मोहतरम समर कबीर जी आदाब, ग़ज़ल तक पहुंचने और खूबसूरत इस्लाह के लिए तहे दिल से शुक्रिया, सुधार की कोशिश करती हूं

Comment by Samar kabeer on October 28, 2021 at 8:42pm

मुहतरमा अंजुमन 'आरज़ू' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं'

आसानियाँ बनाई नहीं जातीं, ग़ौर करें ।

'है भूख इतनी बड़ी अब भी कि छोटे बच्चे'

ये मिसरा बह्र में नहीं,सुधार का प्रयास करें ।

'ग़िज़ा जहान में उनको है ला-मयस्सर क्यों'

इस मिसरे का शिल्प और वाक्य विन्यास ठीक नहीं,यूँ कर लें:-

'ग़िज़ा जहान में उनको नहीं मयस्सर क्यों'

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 26, 2021 at 9:27am

मुहतरमा अंजुमन 'आरज़ू' साहिबा आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।

'मसीहा बन के जो आसानियाँ बनाते हैं

 लगा के आग वही बस्तियाँ बनाते हैं'     मतले के मिसरों में रब्त का अभाव है, सानी मिसरे में क़ाफ़िया रदीफ़ से इन्साफ़ नहीं कर रहा है, ग़ौर फ़रमाएं... 'लगा के आग वही बस्तियाँ जलाते हैं' हो रहा है।

'है भूख इतनी बड़ी अब भी कि छोटे बच्चे'    ये मिसरा बह्र में नहीं है, वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं है ....

'है भूख इतनी बड़ी अब कि छोटे बच्चे भी' करने से बह्र और शिल्प ठीक हो जाएंगे।

'ग़िज़ा जहान में उनको है ला-मयस्सर क्यों'  'नहीं' के वज़्न पर 'है ला' यहाँ मुनासिब नहीं है, देखियेेगा....

'ग़िज़ा जहान में उनको नहीं मयस्सर क्यों'    (विकल्प मौजूद हो तो मात्रा गिराने से बचनाा चाहिए)

'उन्हें नसीब ने घर जाने क्यों दिया ही नहीं

सभी के वास्ते जो आशियाँ बनाते हैं'.           इस शे'र का भाव स्पष्ट नहीं है।   सादर। 

Comment by Shyam Narain Verma on October 24, 2021 at 2:08pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Oct 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service