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एक दिन स्वर्ग में (आशीष यादव)

एक दिन स्वर्ग में घूमते-घूमते
एक जगह रुक्मिणी राधिका से मिली
एक दिन स्वर्ग में……………

सैकड़ों प्रश्न मन में समेटे हुए
श्याम की प्रीत तन पर लपेटे हुए
जोड़कर हाथ राधा के सम्मुख वहाँ
एक रानी सहज भावना से मिली
एक दिन स्वर्ग में …………….

देखकर राधिका झट गले लग गई
साँवरे की महक से सुगंधित हुई
प्रीत की प्रीत में घोलकर मन, बदन
साधना प्रीत की साधना से मिली
एक दिन स्वर्ग में……………

भेँटना हो गया बात होने लगीं
एक दूजे की बातों में खोने लगीं
जो जमाने से दोनों के मन में दबी
थी कसक वो निठुर वेदना से मिली
एक दिन स्वर्ग में……………

रुक्मणी ने कहा, क्या कमी हो गई
तन-बदन सौंपकर श्याम की हो गई
रुक्मिणी-श्याम क्यों ना जमाना कहे
क्यों मेरी साधना वंचना से मिली
एक दिन स्वर्ग में……………

राधिका ने कहा श्याम को भा गई
सौंपकर तन-बदन श्याम को पा गई
तुम गुजारी पिया संग हँस-खेल कर
मैं विरह की सखी इंतहा से मिली
एक दिन स्वर्ग में……………

तुम विवाहित हुई श्याम के संग में
मैं समाहित हुई श्याम के रंग में
तुमने पाया सखी देह का साथ, मै
नेह की रँग भरी अल्पना से मिली
एक दिन स्वर्ग में……………

मौलिक एवं अप्रकाशित

आशीष यादव

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