2122 2122 2122 2122
क्या पता उस लोक में दिखती हैं कैसी अप्सराएँ
किस तरह चलतीं मचल कर किस तरह से भाव खाएँ
कौन सा जादू लिए फिरतीं सभी पर मार देतीं
किस तरह पुचकारती हैं किस तरह से प्यार देतीं
क्या महावर और मेहँदी आँख में काजल अनोखा
केशिनी मृगचक्षुणी हैं सत्य, या उपमान धोखा
किस तरह श्रृंगार रचती किस तरह गेशू सजाएँ
क्या पता कितनी सही है आमजन की कल्पनाएँ
आज देखी थी परी जो हाल कुछ उसका सुनाऊँ
देखता ही रह गया कितना करूँ वर्णन बताऊँ
मोहिनी सूरत मनोहर ललित मंजुल रम्य काया
उदर समतल उरस उन्नत नैन में कौतुक समाया
रंग होठों का निकलते सूर्य का लालित्य लेकर
यूँ त्वचा जैसे मिले हों दूध, कॉफी और केशर
केश थे इतने घने लंबे स्वयं उपमान जैसे
यूँ कहें की स्वर्ग की परियों के भी अरमान जैसे
दाहिना था पाँव सीधा और बाएँ को मुड़ाकर
इस तरह कुछ वह खड़ी थी आलमारी से टिकाकर
शर्ट थी काली बटन थे आठ जो उसमे लगे थे
दो बटन ऊपर खुले थे और दो नीचे खुले थे
दाहिना हिस्सा सुनीले जींस के भीतर पड़ा था था
जींस नीला यूँ कि जैसे नाभि तक सट कर चढ़ा था
कुहनियो के ठीक नीचे शर्ट की मोहड़ी चढ़ी थी
और बाएँ हाथ में क्या जँच रही काली घड़ी थी
बीच वाली अंगुली में एक सोने की अँगूठी
जानु तक लटकी हुई क्या लग रही थी वह अनूठी
आँख पर गॉगल्स काले फ्रेम था जिनका सुनहरा
मुख प्रदीपित यूँ कि जिनपर स्वयं आ दिनमान ठहरा
था यही शृंगार सीमित किन्तु अद्भुत लग रही थी
रूप से वह स्वर्ग अप्सरियों को मानो ठग रही थी
केशिनी के एक मोहक चित्र ने मुझको लुभाया
यह रहा वृत्तांत जो देखा वही मैने सुनाया
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
पढ़ने में उत्सुकता पूर्ण लगी आपकी रचना यादव जी...बधाई
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