लेखक -सतीश मापतपुरी
गतांक से आगे अंक - ५ व अंतिम ------------
सोनाली घोष के उनके जीवन में आना एक कुदरती संयोग है, सोनाली से प्यार करने को उचित मान लिया.प्रो. सिन्हा की उजाड़ ज़िन्दगी में सोनाली घोष बहार बनकर आ गयी थी.अब उन्हें अपनी नीरस ज़िन्दगी सरस लगने लगी थी.औरतों की अपेक्षा पुरुषों में अधिक उतावलापन होता है.एक दिन सोनाली को पढ़ाते -पढ़ाते प्रो.सिन्हा उसका हाथ पकड़ लिए.सोनाली उनका यह अप्रत्याशित व्यवहार देखकर हक्का -बक्का रह गयी.प्रो. सिन्हा सोनाली का हाथ पकड़ कर कहने लगे --"सोनाली! तुम्हारे प्यार ने मेरे शुष्क जीवन को हरा -भरा बना दिया है.तुम्हारे स्पर्श ने मेरे अपाहिज दिल को फिर से धड़कना सिखा दिया है.................. मैं तुम्हे अपना जीवन साथी बनाना चाहता हूँ." प्रो. सिन्हा की बातें सुनकर सोनाली हैरान रह गयी. इसके पहले कि प्रो. सिन्हा सोनाली को अपनी तरफ खींच पाते वह अपना हाथ झटके से छुड़ा ली और बिना उनकी तरफ देखे कमरे से बाहर निकल गयी.
दूसरे दिन कॉलेज में सोनाली नज़र नहीं आई.जब प्रो. सिन्हा शाम को कॉलेज से घर लौटे तो उनकी मेज पर मनोविज्ञान की वह पुस्तक रखी हुई थी जो उन्होंने सोनाली को पढ़ने के लिए दिया था.प्रो. सिन्हा किताब उठाकर देखने लगे.किताब के बीच में एक चिठ्ठी रखी हुई थी.वह चिठ्ठी खोलकर पढ़ने लगे.चिठ्ठी सोनाली की थी........ लिखा था -"सॉरी सर, मुझे अफसोस है कि आपके प्रति मेरे लगाव ने आप जैसे महापुरुष को इतने नीचे स्तर पर ला खड़ा किया.पता नहीं क्यों, हर मर्द औरत से एक ही रिश्ते की कल्पना करता है.औरत बेटी और बहन भी हो सकती है ऐसा क्यों नहीं सोचा जाता? मैं आपके करीब आना चाहती थी, आपके प्रति मेरे मन में आकर्षण था ,यह सच है.किन्तु, आप जैसे उच्चकोटि के मनोवैज्ञानिक मेरे मनोभाव को गलत समझ बैठेगा ऐसा नहीं सोचा था.मै अपने पापा को बहुत प्यार करती थी, आपकी शक्ल मेरे पापा से बहुत मिलती है.आपके करीब आने का यही कारण था."--- सोनाली............. बम सदृश एक धमाका हुआ और प्रो. सिन्हा को लगा कि उनकी प्रतिभा,ज्ञान,विद्वता सबकी नीवं हिल गयी है.उनको अचानक अपना कद बौना नज़र आने लगा.पत्र उनके काँपते हाथों से छिटक कर नीचे गिर गया.प्रो. सिन्हा फटी -फटी नज़रों से पत्र को घूर रहे थे.उन्हें महसूस हो रहा था कि पत्र के एक -एक शब्द हजार -हजार बिच्छू बन कर उन्हें डंक मारने लगे हैं.
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