(दहेज़ के लिए पत्नी को जलाने,हत्या करने जैसी घटनाएँ आज भी हमारे समाज में घट रही हैं. हम कैसे मान लें हम पहले से अधिक शिक्षित और सभ्य हो चुके हैं. मानसरोवर --4 इसी अमानुषिक कृत्य पर आधारित है.
वह रोती और बिलखती है.
हंसी देकर, आप सिसकती है.
ओह! कितना पतित इंसान हुआ, कितना बेईमान ईमान हुआ.
चांदी - सोने के ढेरों में, रुपये - पैसों के घेरों में.
माँ और बहन को छिपा दिया.
पत्नी - प्रेयसी को लुटा दिया.
युवजन को समय पुकार रहा, मत भूल कि कल तेरा है.
पर दहेज़ को ख़तम करो, यह प्रबल शत्रु तेरा है.
युवक -युवती हैं समान, फिर क्यों दहेज़ का घेरा है.
प्रिय,तुम्हारे कर कमलों में मानसरोवर मेरा है.
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आपके विचारों का अनुमोदन करते हुए आपकी संवेदना को धन्यवाद देता हूँ.
युवजन को समय पुकार रहा, मत भूल कि कल तेरा है.
पर दहेज़ को ख़तम करो, यह प्रबल शत्रु तेरा है.
युवक -युवती हैं समान, फिर क्यों दहेज़ का घेरा है.
प्रिय,तुम्हारे कर कमलों में मानसरोवर मेरा है.
aap ki bato ko samarthan karte huye ham aapna bhi birodh darj karate hain
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