दर्द है ये दो दिलों का, एक का होता नहीं
जागते है संग दोनों, कोई भी सोता नहीं
ये ख़ुशी है या के ग़म है, कोई कह सकता नहीं
दर्द का वैसे भी यारो, रंग होता हीं नहीं
याद आती है घडी वो, जब पहली बार हम मिले थे
बसंत के वो दिन नहीं थे, पर फूल दिल में खिले थे
क्या हुआ जो सारी यादें, धूल बन के उड़ गयी
दोनों ने मांगी थी खुशियां, क्यों शूल बनके चुभ गयीं
आपसी सम्मान को क्यों, दोनों ने भुला दिया?
घोंसला सपनो का हमने, खुद हीं क्यों जला दिया?
मैं गलत या तू सही है, फर्क अब पड़ता है क्या?
फैसला अब पूछता है, अमल से डरता है क्या?
खुशियों का हरेक लम्हा, कैसे हम भुलाएँगे
बीती रातें दूर तक, अब साथ अपने जाएंगे
रूठने मनाने का जो, सिलसिला हमारा था
साथ छूटने का ग़म भी, हमको ही उठाना था
क्या हुआ जो साथ टूटा, जाने क्यों वो हाथ छूटा
क्या गलत कर दिया जो, दोनों का दिल साथ टूटा
सपने हमने देखे थे, जो सुनहरे भविष्य के
बाते बनकर रह गए, सब अपने अतीत के
दोनों को ही खुद के, अहम का अभिमान था
अपने स्वाभिमान का, एक झूठा गुमान था
प्यार में झुक गए तो, छोटे ना हो जाओगे
एक बार बो रिश्ता टूटा, फिर जोड नहीं पाओगे
मैं हूँ, बस मैं ही हूँ ये बड़ा कमाल है
घर के टूटने का ये तो ज़िंदा मिसाल है
शादी कोई खेल नहीं जन्मों का बंधन है
टूट जाए ये अगर तो मन में होता क्रंदन है
कागज के टुकड़ो को किसने बनाया है
आत्मा अलग हो जाए किसने ये सिखाया है
हो गए अलग तो, क्या हंस कभी तुम पाओगे
आंसूओं को कैसे, अपने पलकों में छुपाओगे
हमसफ़र नया तुम्हारा, जब तुम्हे बुलाएगा
उसके बुलावे में क्या, मेरा भाव ना आएगा
हर कदम पर उसमे तुम हमको ही निहारोगे
मेरी अच्छाइयों को उसमे बार-बार ख़ंगालोगे
तेरा मैं ना हो सका तो उसका ना हो पाऊँगा
साथ अपने उसकी भी खुशियां मैं गवाऊंगा
आओ चले लौटकर फिर हम अपने संसार में
हो गया जो छोड़ दे सब उनको मझधार में
चलकर हम साथ में फिर घोंसला बनाएंगे
भूल जो भी कर बैठे फिर उसको ना दोहराएंगे
साथ अपने साथी का उम्र भर निभाएंगे
अपनी इस बगियाँ में फूल दो खिलाएंगे
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
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