For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं धरती बोल रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ,

हाँ-हाँ धरती बोल रही हूँ

अपनी व्यथा सुनाने को मैं

मैं कब से डोल रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ

 

मैंने ही तुमको जन्म दिया

मैंने तुम सबको पाला भी

अपने कोख में सींचा तुमको

मैंने ही दिया निवाला भी

पर तुमको मेरी फ़िक्र नहीं

मैं कब से उबल रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ

तूमने अपना संसार बसाया

फिर अपना परिवार बढ़ाया

सदा अपने स्वार्थ की ख़ातिर

तूमने मेरा खून बहाया

जितना चाहा दोहा मुझको

मैं सब कुछ झेल रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ

 

खेत बनाए, खलिहान बनाए

जीने के सब सामान बनाए

मतलब से ज्यादा नीर बहाया

नदियों का तूमने वेग घटाया

अपनी सुख-सुविधा के ख़ातिर

विलासिता का अंबार लगाया

तेरी हटधर्मी को जाने कब से

बिन कुछ कहे देख रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ

हवा बदली तूमने घटा बदली

प्रकृति की दशा बदली

स्वच्छ नीले आसमान की

प्रदूषण से आभा बदली

सावन बदला, वसंत बदला

गर्मी, सर्दी, हेमंत बदला

अपने घावों का ये दर्द मैं

मन हीं मन सह रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ

तुमने छीना हर धन मेरा

तार-तार किया मन मेरा

अपनी हवस के ख़ातिर तुमने

खोखला कर दिया बदन मेरा

खजाना सारा लूट लिया

अब कुछ ना मुझमे छुट गया

अपने मन से मैं तेरे मन को

कब से टटोल रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ

 

ये जीवन चक्र मैंने हीं रचा

मुझमें हीं कुछ ना शेष बचा

पहली बार मैं खुदको

अपने अंदर समेट रही हूँ

बची हुई संपदा को अपने

मैं अब संचित कर रही हूँ

एक बार फिर से मैं अपने जल को

शुद्ध, निर्मल, स्वच्छ कर रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ

जैसे तूने बेजुबानों को

बांधा और घसीटा है

खाया कभी, पहना कभी,

कभी खुश होने को पीटा है

बंद कर पिंजरे मे उनको

अपने लोगों से दूर किया

चुपचाप अकेले रहने पर

उनको तूने मजबूर किया

आज उन्हीं की भांति मैं

तुमको पिंजरे मे धकेल रही हूँ

मैं धरती बोल रही हूँ

हाँ-हाँ मैं धरती बोल रही हूँ

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

Views: 220

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AMAN SINHA on May 25, 2022 at 10:17am

आदरणीय  Rachna Bhatia जी, 

हौसला बढाने के लिये धन्यवाद। 

Comment by Rachna Bhatia on May 24, 2022 at 8:35pm

आदरणीय अमन सिन्हा जी , वाह वाह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service