आओ कसम लें देश जलाया न जाएगा
अब एक दूसरे को चिढ़ाया न जाएगा।।
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यह देश राम श्याम से विक्रम भरत से है
वन्शज इन्हीं के सारे भुलाया न जाएगा।।
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मंगोल हूण शक या मुगल आर्य जो भी हैं
आपस में इन को और लड़ाया न जाएगा।।
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बाबर की भूल आज भी जुम्मन गले लगा
सबको कसम है ऐसा सिखाया न जाएगा।।
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संख्या का खेल देश में मन्जूर अब नहीं
कोई भी भेद-भाव हो गाया न जाएगा।।
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होगी समान न्याय की जब रीत देश में
तब बेकसूर कोई सताया न जाएगा।।
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शासन भी सौं ले निष्ठ हो सेवा करेगा नित
जो भी है सत्य और छिपाया न जाएगा।।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर संदेशपरक रचना।
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