ले चल अपने संग हमराही, उन भूली बिसरी राहों में
जहां बिताते थे कुछ लम्हे हम एक दूजे की बाहों में
चल चले उन गलियों में फिर थाम कर एक दूजे का हाथ
क्या पता मिल जाए हमको फिर वो जुगनू की बारात
जहां चाँद की मद्धिम बुँदे वादी से छन कर आती है
और ताल की जल पर पड़ कर चांदी सी छितरा जाती है
जहां डाल पर तोता मैना बातें मीठी करते हैं
जहां चाँद को देख चकोरे, आंहें भरते रहते है
वहीं झील में नांव चाले तो मांझी गान सुनाता है
वहीं पेड़ पर बैठ पपीहा, अपनी व्यथा दोहराता है
वहीं जहां पर नभ के तारे रोज़ हम से बतियाते थे
वही जहां पर काले बादल मिलने की प्यास जगाते थे
वहीं जहां पर किट मकोड़े अपने धुन मे लगे रहे
वहीं जहां पर हम तुम दोनों घंटो बेसुध पड़े रहे
आज वही फिर चलते है दोहराने उन यादों को
फिर से हम-तुम दोहरा लें अपने भूले उन वादों को
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
Comment
आदरणीय indravidyavachaspatitiwari साहब,
हौंसला बढाने हेतु आपका धन्यवाद।
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