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2122 1212 22

उसकी आँखों से जूझते आँसू
मैंने देखे हैं बोलते आँसू

कैसे आँखों में बाँध रक्खोगे,
हिज्र की शब में काँपते आँसू,

राज़ कितने छुपाये हैं मन में,
उस की पलकों से झाँकते आँसू

कैसे तस्लीम कर लिये जायें
बेवफ़ा तेरे वास्ते आँसू,

इब्तिदा इश्क़ की हँसाती थी,
इंतिहा में हैं टूटते आँसू

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Anita Maurya on July 27, 2022 at 6:04pm

बहुत शुक्रिया लक्ष्मण जी


बहुत शुक्रिया सुशील जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2022 at 12:08pm

आ. अनीता जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on July 18, 2022 at 1:10pm
वाह बहुत खूबसूरत गजल बनी है आदरणीया जी । हार्दिक बधाई आदरणीया जी

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