ज़िंदा हूँ अब तक मरा नहीं, चिता पर अब तक चढ़ा नहीं
साँसे जब तक मेरी चलती है, तब तक जड़ मैं हुआ नहीं
जो कहते थे हम रोएंगे, कब तक मेरे ग़म को ढोएंगे?
पहले पंक्ति में खड़े है, जो कहते है कैसे सोएँगे?
मैं धूल नहीं उड़ जाऊंगा, धुआँ नहीं गुम हो जाऊँगा
हर दिल में मेरी पहूंच बसी, मर के भी याद मैं आऊँगा
कैसा होता है मर जाना, एक पल में सबको तरसाना
मूँह ढाके शय्या पर लेटा, मैं तकता हूँ सबका रोना
साँसों को रोके रक्खा है, कफन भी ओढ़े रक्खा है
क्या हाल है मेरे अपनों का, मैंने देख सभी को रक्खा है
कुछ मूँह छुपाए खड़े रहे, कुछ आँख दिखाए अड़े रहे
खुद को जो अपना कहते थे, वो पीठ दिखाए खड़े रहे
कोई अर्थी को सजा रहा, आँसू को कोई छुपा रहा
कुछ कागजात के चक्कर में, अपने भावों को छुपा रहा
जो अपने थे सब गैर हुए, प्रेमी बदल कर बैरी हुए
जिनको हम अपना माने थे, किसी और के सब वो, खैर हुए
मैं खड़ा हुआ सब जाग गये, घड़ियाल थे जो सब भाग गये
बस दो हीं सच्चे साथी थे, मेरे उठने से जो चहक गये
अब बस उनसे ही रिश्तेदारी, है उनसे हीं सच्ची यारी है
जो अंत तक साथ निभा रहें, संग उनके दूसरी पारी है
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
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