पहली बार उसको मैंने, उसके आँगन में देखा था
उसकी गहरी सी आँखों में, अपने जीवन को देखा था
मैं तब था चौदह का, वो बारह की रही होगी
खेल खेल में हम दोनों ने, दिल की बात कही होगी
समझ नहीं थी हमें प्यार की, बस मन की पुकार सुनी
बचपन के घरौंदे ने फिर, अमिट प्रेम की डोर बुनी
उसे देखकर लगता था जैसे, बस ये जीवन थम जाए
बस उसकी भोली सूरत पर, नज़रें मेरी ठहर जाए
कई और थे उसके साथी, पर उसने बस मुझको देखा
उसके मन से मेरे मन तक, थी कोई एक अंजानी रेखा
खेल खेल में हाथ पकड़ कर, फेरे कितनी बार लिए
प्यार हमारा सदा रहेगा, वादें कई हजार किए
वो बचपन था कितना अच्छा, मोल भाव का मेल नहीं
बड़े हुए तो समझा हमने, सपनों का कोई मोल नहीं
बचपन बीता आई जवानी, ढेरों रंग वो ले आई
ना जाने फिर किस कोने में, बचपन की यादें खो आई
हम दोनों है अब भी संगी, पर साथी अब रहे नहीं
ज्योत है अभी भी बाकी पर, दिया-बाती रहें नहीं
हाथ पकड़ कर किसी और का, जीवन पथपर वो निकल पड़ी
देखकर मेरी बेसुध हालत, गांव की गलियां कलप पड़ी
दोनों बिछडे एक-दुजे से, पर क्या हम खुश रह पाएंगे?
क्या हम अपने दिल से बचपन, की याद मिटा भी पाएंगे ?
अच्छा होता के हम तुम दोनो, एक दुजे के हो जाते
संग मे हँसते संग मे रोते, आंख मूँद कर सो जाते
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार जी,
प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद। आपको ज्ञात हो की यह रचना मेरे निजी अनुभव से बिल्कुल भी प्रेरित नहीं है। मैं कभी भी किसी के आकर्षण के लायक नहीं बन पाया। बस एक रोज़ कलम उठाई तो ये शब्द खुद हीं पन्ने पर छप गयें। आपको अच्छी लगी तो लगा जैसे लिखना सफल हो गया।
धन्यवाद।
आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब,
आपके प्रोत्साहन के लिये असंख्य धन्यवाद।
मैं निश्चित तौर पर आप सभी के सुझावों को ध्याने में रखुंगा, और सही-सही लिखनी का प्रयास करुंगा।
धन्यवाद।
भाव अच्छे हैं क्योंकि लेखक की आपबीती लग रही...बधाई
आ. भाई अमन जी, अभिवादन।अच्छी प्रवाहमय रचना हुई है। हार्दिक बधाई। प्रबुद्धजनों की बातों का संज्ञान लेते हुए टंकण त्रुटियों पर भी ध्यान दें बहुवचन के साथ क्रिया के रूप पर भी ध्यान दें । मे को में लिखे। शेष शुभ शुभ....
आदरणीय समर कबीर साहब,
आपकी टिप्पणी के लिये तो मैं तरस गया था। जितने प्रेम से आप समझाते है वैसा कोई और नहीं समझाता।
मैं अवश्य हीं आप सभी गुरुजनो के सुझाव पर ध्यान दूँगा और सही-सही लिखने का प्रयास करुंगा।
धन्यवाद।
जनाब अमन सिन्हा जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें I
जनाब अशोक रक्ताले जी की बैटन पर ध्यान अवश्य दें I
आदरणीय अमन सिन्हा जी, सुंदर प्रवाहमय काव्य रचना की है आपने. बचपन का साथी, जीवन-साथी भी बने यह सौभाग्य की ही बात होती है. किन्तु सब मनचाहा हो ये कहाँ संभव है. रचना शिल्प की बात करें तो तुकांतता पर ध्यान दिया जाना चाहिए. इससे रचना सौन्दर्य में कई गुना वृद्दि होती है. अभी भी या संग में लिखा जाना व्याकरण अनुसार अच्छा नहीं है. इनको क्रमशः अब भी और संग ही लिखा जाए तो बेहतर होगा.सादर
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