उषा अवस्थी
लोक कथाएँ "कुछ" कहती हैं
भाव भरे, विभिन्न रस सिंचित
वह जीवन को गहती हैं
जुड़े रहें सम्बन्ध आपसी
प्रेम प्रगाढ़ विरचती हैं
परिवारों के रिश्ते-नाते
नेह- स्वरों से भरती हैं
प्रीति- पगे सुन्दर वचनो से
हो उत्फुल्ल गमकती हैं
सामाजिक समरसता के
शुभ ताने-बाने बुनती हैं
लोक -कथाएँ "कुछ" कहती हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 समर कबीर जी आदाब , रचना अच्छी लगी, जानकर खुशी हुई। हार्दिक आभार आपका।
मुह्तरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें I
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