2122 1212 22
फ़स्ल-ए-गुल है समाँ है मस्ताना
आज फिर दिल हुआ है दीवाना
यूँ तो हर आँख में नशा लेकिन
उनकी आँखों में पूरा मयखाना
जबसे आये हैं उनको महफ़िल में
भूल बैठे हैं यार घर जाना
उनकी महफ़िल में वो सुकून ए दिल
जैसे महफ़िल नहीं हो बुत़खाना
क़ातिलाना है हर अदा उनकी
जान-लेवा है उनका शर्माना
हमसे पूछो न ज़ीस्त का आज़ी
हमने कैसे पिया है पैमाना
मौलिक व अप्रकाशित
आज़ी तमाम
Comment
सादर प्रणाम आ गुरु जी
ग़ज़ल तक आने व इस्लाह करने के लिये सहृदय शुक्रिया
मैं दुरुस्त करने की कोशिश करता हूँ
सादर
जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I
'बैठे बैठे हुए हैं रिंदाना'--- इस मिसरे में क़ाफ़िया काम नहीं कर रहा है, "रिन्दाना" का अर्थ होता है ,रिंद से निस्बत रखने वाला, ग़ौर करें I
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