गीत-१०
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सब स्वागत में खड़े हुए हैं, आने वाले साल के
कौन विदाई देगा बोलो, जाने वाले साल को।।
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कितनी कड़वी मीठी यादें, बाँधे घूम रहा गठरी में
आँसू वाली आँख न कोई, देखी मतवाली नगरी में
आया था तो पलकपावड़े, बिछा दिये थे सब लोगो ने
आज न कोई पूछ रहा है, बोलो जाओगे किस डगरी।।
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दुख पाया जिसने उसकी तो, बात समझ में आती है
सुख पाने वाले भी कहते, रुको न जाते काल को।।
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माना अभिलाषायें सबकी, पूर्ण न कर पाया हो लेकिन
कुछ तो फूल खिलाए होंगे, कुछ तो छाँटे होंगे दुर्दिन
सिर्फ उदासी बाँटी हो बस, ऐसा तो आचार न उस का
हो सकता है भूल गया हो, द्वार तुम्हारा कोई पलछिन।।
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जिसको रोली तिलक लगाया, आने पर उत्साहित हो
लौट रहा जब कठिन उपेक्षा, बाँध न दो उस भाल को।।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
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