( गीत -९)
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हर्षित करने सब का जीवन, आना नूतन साल।
निर्धन हो कि धनी नर नारी, रखना उन्नत भाल।।
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धर्म जाति से फूट मत पड़े, हो जनता समवेत।
नगर गाँव में अन्तर कम हो, यूँ व्यवहार समेत।।
हर आँगन में किलकारी हो, हरा भरा हर खेत।
स्वर्ण कणों में अबके बदले, ऊसर मिट्टी रेत।।
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अतिशय हों भण्डार अन्न के, दूध दही भरपूर।
महामारियों, दुर्भिक्षो का, रूप न ले फिर काल।।
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शासक कोई न हो विश्व में, इतना बढ़चढ़ क्रूर।
झोंके जायें और समर में, राष्ट्र न अब मजबूर।।
आस-पड़ौसी मिलनसार हों, ईर्ष्या से रह दूर।
शांति फलित हो, हर जन पाये, लड्डू मोतीचूर।।
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उन्नत सभ्य जगत फिर से हो, बदले सबकी सोच।
हर जीवन का मोल बहुत है, रक्षित हो हर हाल।।
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चक्रव्यूह बस रचे न कोई, करने जीवन अन्त।
द्वेष भाव की नदिया सूखे, हर मानव हो कन्त।।
हर मन पावनता का घर हो, तन हो जैसे सन्त।
सुख का आना रहे सुनिश्चित, शेष नहीं हो हन्त।।
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हो सहयोगी अनजाना भी, शक्तिमान हो मीत।
मित्र बनाने में ढल जाये, दुश्मन की हर चाल।।
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रहे अकेला मत कोई जन, सुख दुख में हो भीड़।
घाव सभी का एक सरीखा, एक सभी की पीड़।।
आस तुम्हीं से तोड़ोगे अब, द्वेष भाव की रीड़।
आँधी-तूफाँ से रक्षित कर, हर पन्छी का नीड़।।
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मधुमासों की बात न केवल, है इतनी अरदास।
पतझड़ में भी अबके मत हो, सूनी कोई डाल।।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गीत पर आपकी प्रतिक्रिया से मन आस्वस्त हुआ। हार्दिक आभार।
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और असीम स्नेह के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छा गीत लिखा आपने, बधाई स्वीकार करें ।
नमस्कार, आदरणीय भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब, खूबसूरत भावपूर्ण, सारगर्भित गीत लिखा आपने, नव-वर्ष की मंगल कामना करते हुए , आमीन ! बधाई आपको मनोरम गीत सर्जन हेतु !
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