For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सर्द रातें और प्रेम - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

( सरसी छंद)
***
धीरे-धीरे जब आती है, घर आँगन में शीत।
नाना रूपों में रक्षा  को, ढल जाती है प्रीत।।
माँ के हाथों स्वेटर में ढल, दे बचपन में साथ।
युवा हुए तो ऊष्मा देता, बन अनजाना हाथ।।
*
पत्नी होकर सदा चूमता, स्नेह शीत में माथ।
होते वंचित सिर्फ शीत में, लोगो यहाँ अनाथ।।
बचपन, यौवन रहे बुढ़ापा, सर्द शीत की रात।
उष्मित करती तन्हाई में, सिर्फ प्रीत की बात।।
*
प्रेम रहित तनमन करता है, जीवन से परिवाद।
सर्द शीत की रातों की  तो, ला  मत कोई याद।।
ऊष्मित होती निशा शीत  की, बनता नेह अलाव।
नेह रहित हो ग्रीष्म दिवस भी, करता रक्त जमाव।।
*
शीत लहर जितना भी कर दे, जाड़े का अनुवाद।
प्रेम भरा तनमन  ना  करता, थोड़ा भी अनुनाद।।
भले तीव्र हो कितना ही क्यों, शीत समीर प्रवाह।
छुअन प्रीत की सर्द निशा  में, लगती सूरज दाह।।
*
सर्द निशा हो साथ पिया का, नित देता आह्लाद।
पिया गये परदेश अगर  हों, उष्मित करती याद।।
हो जाड़े की  सर्द  रात में, जिसको प्रेम अलाव।
हल्के गर्म गुलाबी दिन सा, उसको जीवन भाव।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 121

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 25, 2023 at 6:06pm

बढ़िया भावपूर्ण सृजन आदरणीय धामी जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for Radheshyam Sahu 'Sham'
"आ. भाई राधेश्याम जी, आपका ओबीओ परिवार में हार्दिक स्वागत है।"
40 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२ २२२२ २२२२ २**पर्वत पीछे गाँव पहाड़ी निकला होगा चाँद हमें न पा यूँ कितने दुख से गुजरा होगा…See More
58 minutes ago
Radheshyam Sahu 'Sham' is now a member of Open Books Online
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दो चार रंग छाँव के हमने बचा लिए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई आशीष जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार।"
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"बहुत आभार इस बारीक़ विश्लेषण के लिए आदरणीय उस्मानी जी। आपकी बातों पर ग़ौर करके अवश्य इन्हें रचना…"
14 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"आपका हार्दिक आभार आ. उस्मानी जी। "
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"आदाब। आपकी पैनी दृष्टि से रचित यह कड़वे सच वाली रचना वाकई कुछ भिन्नता लिये हुए है। हार्दिक बधाई जनाब…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"यह भी खूब रही। पोल खोल रही। बढ़िया शैली में बढ़िया लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"रचना पटल पर उपस्थिति हेतु धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। अचानक 'म' सूझा और म, मा , माँ…"
21 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)
"आदरणीय उस्मानी जी, 'म' ने कोई गड़बड़ी नहीं की। वह तो मात्राओं की कारस्तानी है, साहिब।…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to अजय गुप्ता 'अजेय's discussion आयोजन कैलंडर संबंधित
"आपकी बात से मैं भी सहमत हूँ। कई बार तिथि याद नहीं रह पाती। इससे निरंतरता बनी रहेगी। "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .राजनीति
"आ. भाई सुशील जी, सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई। धर्म के प्रतिमान में मेरे हिसाब से मात्राएँ कम…"
23 hours ago

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service