देखो भाई, यदि आपने भ्रष्टाचार नहीं किया हो तो लगे हाथ यह सौभाग्य पा लो और बहती गंगा में हाथ धो लो। फिर कहीं समय निकल गया तो फिर लौटकर नहीं आने वाला है। भ्रष्टाचार की अभी खुली छूट है, जब जैसा चाहो, कर सकते हो। बाद में न जाने मौका मिलेगा कि नहीं, कहीं पछताने की नौबत न आए। फाइलों की सुरंग से बारी-बारी एक-एक भ्रष्टाचार का दानव बाहर निकलकर आ रहा है, ये इतने शक्तिशाली हैं कि इन पर हाथ डालने कतराना पड़ता है और जब दबाव में उसकी कमीज से मक्खी उड़ा भी लिए और वह जेल की चारदीवारी में पहुंच गया तो वहां भी मौज ही मौज ? कहीं से नहीं लगता कि वह भ्रष्टाचारी जेल की रोटी तोड़ रहा है। उसे तो जेल ऐसी लगती है, ‘घर से दूर-घर जैसा’।
भ्रष्टाचार का भूत पूरे उमंग में नजर आ रहा है और घूम-घूमकर अठखेलियां कर रहा है। जब उसे रोकने वाला कोई नहीं है और न ही उसकी पहचान करने वाला, तो काला धन छुपाकर भी सफेदपोश बना रहा जा सकता है। जब सब जगह काला ही काला है, फिर काला धन रास तो आएगा ही। भ्रष्टाचार की छाया कभी गरीबों पर नहीं पड़ती, उसे तो बस बड़े व ओहदेदार लोगों पर मेहरबानी करने आता है और भगवान की लीला ही ऐसी है कि भ्रष्टाचारी मलाई मारता है और गरीब, भुखमरी का फांके छानता है। गरीब, जीवन भर यही प्रार्थना करते रहता है, बस उसे एक बार अमीर बना दे, मगर वह एक बार भी यह नहीं कहता कि भ्रष्टाचार की कला सीखा दो ? आज देश में जैसे भुखमरी व बेरोजगारी कायम है, उसके बाद तो मुझे लगता है कि यह गुण भी गरीबों को भ्रष्टाचारियों से सीख लेनी चाहिए। भ्रष्टाचारियों की तिजोरियों में कचरे की तरह पड़े नोटों को देखकर लार टपकाने से कुछ नहीं होने वाला, ऐसी उपलब्धि हासिल करने के लिए कई धतरकम करने पड़ते हैं। कईयों के विकास के लिए बनी योजनाओं को चट करनी पड़ती है और गरीबों के हिस्सों को सब कुछ पचा लेने वाले छोटे से पेट के हवाले करने हर पल उतारू रहना पड़ता है। भ्रष्टाचार के महारथी बनने के लिए ये खूबी तो होनी ही चाहिए, इसके बगैर खाली तिजोरी नहीं भरी जा सकती। इसके लिए उंचे ओहदे में कैसे पहुंचा जाए, इसकी जुगाड़ लगाओ, क्योंकि जब तक कुर्सी की माया मेहरबान नहीं होगी, तब तक भ्रष्टाचार की कामयाबी नहीं मिलेगी।
यहां सोचने वाली बात यह है कि आज भ्रष्टाचार पूरी तरह मुरब्बा बन गया है और उसकी मिठास लेने जहां देखो, वहां कोई न कोई लालायित नजर आ रहा है। जान भी रहे हैं कि पकड़े भी गए तो कुछ बिगड़ने वाला नहीं है, यहां भी हाथ की सफाई काम आती है। वैसे भी दोनों हाथों से लुटाने पर कौन नहीं लुटेगा ? ये अलग बात है, कुछ बदनामी भी हो सकती है, मगर इससे क्या फर्क पड़ता है। वे यही कहते नहीं थकेंगे- जिनका नाम है, वही तो बदनाम है।
पिछले दिनों की बात है कि भ्रष्टाचार से मेरी भी मुलाकात हो गई, उसने मुझे भी अपने दावत में बुलाया। मैं वहां जाना चाहता था, मगर मुझे अपनी हैसियत भी पता है कि मैं उस जमात में कैसे शामिल हो सकता हूं, जहां बस करोड़ों-अरबों की बात होती है ? अपनी तो हालत ऐसी है कि अपने पास कितने रूपये हैं, वह हमेशा याद रहता है, क्योंकि कड़की जो हर समय बनी रहती है। भ्रष्टाचार की करामात का मजा लेने वालों जैसा थोड़ी न है, जो वे तिजोरी में नोटों को रखकर भूल जाते हैं ? यही तो भ्रष्टाचार के मुरब्बे की मिठास है, जब पता ही नहीं चलता है कि कितना कहां से आया ? और यह भी पता नहीं रहता, जो है, वह भी कब बाहर निकलेगा ? सब भ्रष्टाचार देवता की मेहरबानी है। अब ऐसे में कैसे किसी का भ्रष्टाचार के मुरब्बे की ओर रूझान नहीं बढ़ेगा। आपको में भी भ्रष्टाचार के मुरब्बे की मिठास का आनंद लेना है तो देर मत कीजिए !
राजकुमार साहू
लेखक व्यंग्य लिखते हैं।
जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 098934-94714
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