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प्यार करने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए ( गीत-१७)-


शोर है चहुँ ओर ,आया प्यार का मौसम, मगर
प्यार करने  के  लिए  मौसम  नहीं मन चाहिए।।
*
भोग का आनन्द क्षण भर तृप्ति का आभास दे।
वह न हो पाया तो मन को हार का अहसास दे।।
कौन शिव सा अब शती की देह थामें डोलता।
ओट पाते  वासना  के  द्वार  पलपल खोलता।।

भोगने को तन तनिक उत्तेजना का पल बहुत।
प्यार करने  के  लिए  तो  पूर्ण जीवन चाहिए।।
*
देखता हर पथ सुगढ़ जाता यहाँ है प्यास तक।
आ सका है कौन अब संभोग से संन्यास तक।।
आज उपमा लिख  रही  उपभोगवादी लेखनी।
भोगने को नित मचलती साँस की हर धौंकनी।।

हर कदम उन्मुक्त है आवास से आकाश तक।
भोग में भटके हुओं को अब न बन्धन चाहिए।
*
प्रेम की हर याचना में अब यहाँ तो छल भरा।
हर मिलन से पूर्व राधा कह रही है मन डरा।।
अब नहीं बैठा  प्रतीक्षा  कर  रहा राँझा कहीं।
मिल गया मौका जहाँ भी सन्धि होती है वहीं।।

शूल से गठजोड़  मधुकर  कर रहा है अब सहज।
हाँ उसे भी अधखिली कलियों का यौवन चाहिए।।
*
पथ पुराना प्रेम का नित जिस मुसाफ़िर को लगा।
झट नये की  कामना  का  भाव उस मन में जगा।।
अब न बन्धन सात जन्मों के लिए मन मानता।
देह से मिल देह  भाषा  सिर्फ  वह अब जनता।।

बाँस के दुर्लम  सुमन  पर  रीझ बैठा मन बहुत।
नीम तुलसी का किसे अब बोल आँगन चाहिए।।
*
पथ विचलकर रीत भूला हर कहीं मौसम नया।
स्वाति का चाहक पपीहा भूल पावस को गया।।
चल पड़ी पछुआ हवाएँ और पुरवा खो गयी।
ढूँढती नित बस नयापन यह सदी जो है नयी।।

कौन पनघट, कौन नदिया, तृप्ति का अहसास दे।
प्यास बिन भी जब अधर को पूर्ण सावन चाहिए।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

( आ. भाई सौरभ जी व गुणींजनों से अनुरोध है की परिमार्जन सम्भव हो तो सुझाएँ)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2023 at 12:16pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति , उत्साहवर्धन व कमियों को इंगित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।यदि सम्भव हो तो अन्य रचनाओं पर भी अपनी राय प्रकट करें। सादर..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2023 at 8:03pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति , उत्साहवर्धन व कमियों को इंगित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Chetan Prakash on February 18, 2023 at 7:22am

शुभ प्रभात,  भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर,  सुन्दर गीत लिखा आप ने !

हाँ, चूँकि गीतिका छंद आधारित गीत में सम्पादन का अभाव प्रतीत हुआ  ।

(1)  पहले अन्तरे की तीसरी पंक्ति में "शती" के स्थान पर 'सती' होना चाहिए। 

 (2)दूसरे बन्द की पहली पंक्ति "'"देखता" के बजाय  'देखते' होना चाहिए। 

(3) "सुगढ़" से आपका क्या अभिप्राय है, स्पष्ट नहीं हो सका, बंधुवर  !

(4) "उपमा" , अपेक्षाकृत 'कविता ' बेहतर होता !

(5) चौथे अन्तरे मे "जनता" , 'जानता' के बजाय टाइपिंग अशुद्धि शेष रह गयी।

 वैसे  कुल गीत ने अच्छा प्रभाव छोड़ा है,  बधाई  !

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