For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार करने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए ( गीत-१७)-


शोर है चहुँ ओर ,आया प्यार का मौसम, मगर
प्यार करने  के  लिए  मौसम  नहीं मन चाहिए।।
*
भोग का आनन्द क्षण भर तृप्ति का आभास दे।
वह न हो पाया तो मन को हार का अहसास दे।।
कौन शिव सा अब शती की देह थामें डोलता।
ओट पाते  वासना  के  द्वार  पलपल खोलता।।

भोगने को तन तनिक उत्तेजना का पल बहुत।
प्यार करने  के  लिए  तो  पूर्ण जीवन चाहिए।।
*
देखता हर पथ सुगढ़ जाता यहाँ है प्यास तक।
आ सका है कौन अब संभोग से संन्यास तक।।
आज उपमा लिख  रही  उपभोगवादी लेखनी।
भोगने को नित मचलती साँस की हर धौंकनी।।

हर कदम उन्मुक्त है आवास से आकाश तक।
भोग में भटके हुओं को अब न बन्धन चाहिए।
*
प्रेम की हर याचना में अब यहाँ तो छल भरा।
हर मिलन से पूर्व राधा कह रही है मन डरा।।
अब नहीं बैठा  प्रतीक्षा  कर  रहा राँझा कहीं।
मिल गया मौका जहाँ भी सन्धि होती है वहीं।।

शूल से गठजोड़  मधुकर  कर रहा है अब सहज।
हाँ उसे भी अधखिली कलियों का यौवन चाहिए।।
*
पथ पुराना प्रेम का नित जिस मुसाफ़िर को लगा।
झट नये की  कामना  का  भाव उस मन में जगा।।
अब न बन्धन सात जन्मों के लिए मन मानता।
देह से मिल देह  भाषा  सिर्फ  वह अब जनता।।

बाँस के दुर्लम  सुमन  पर  रीझ बैठा मन बहुत।
नीम तुलसी का किसे अब बोल आँगन चाहिए।।
*
पथ विचलकर रीत भूला हर कहीं मौसम नया।
स्वाति का चाहक पपीहा भूल पावस को गया।।
चल पड़ी पछुआ हवाएँ और पुरवा खो गयी।
ढूँढती नित बस नयापन यह सदी जो है नयी।।

कौन पनघट, कौन नदिया, तृप्ति का अहसास दे।
प्यास बिन भी जब अधर को पूर्ण सावन चाहिए।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

( आ. भाई सौरभ जी व गुणींजनों से अनुरोध है की परिमार्जन सम्भव हो तो सुझाएँ)

Views: 220

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2023 at 12:16pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति , उत्साहवर्धन व कमियों को इंगित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।यदि सम्भव हो तो अन्य रचनाओं पर भी अपनी राय प्रकट करें। सादर..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2023 at 8:03pm

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति , उत्साहवर्धन व कमियों को इंगित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Chetan Prakash on February 18, 2023 at 7:22am

शुभ प्रभात,  भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर,  सुन्दर गीत लिखा आप ने !

हाँ, चूँकि गीतिका छंद आधारित गीत में सम्पादन का अभाव प्रतीत हुआ  ।

(1)  पहले अन्तरे की तीसरी पंक्ति में "शती" के स्थान पर 'सती' होना चाहिए। 

 (2)दूसरे बन्द की पहली पंक्ति "'"देखता" के बजाय  'देखते' होना चाहिए। 

(3) "सुगढ़" से आपका क्या अभिप्राय है, स्पष्ट नहीं हो सका, बंधुवर  !

(4) "उपमा" , अपेक्षाकृत 'कविता ' बेहतर होता !

(5) चौथे अन्तरे मे "जनता" , 'जानता' के बजाय टाइपिंग अशुद्धि शेष रह गयी।

 वैसे  कुल गीत ने अच्छा प्रभाव छोड़ा है,  बधाई  !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service