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कहूँ सच आपका कोई नहीं है
जहाँ में आश्ना कोई नहीं है
सबूतों बात ये कह दी अभी से
वो दुनिया में मिरा कोई नहीं है
ये सब माया उसी की जो छुपा है
सिवा उसके ख़ुदा कोई नहीं है
अकेलापन बड़ी सबसे सज़ा है
अभागा अन्यथा कोई नहीं हैं
किया जो ज़ुर्म उसने वो भरेगा
वो मेरा मुँहलगा कोई नहीं है
मुखौटा कब कोई पहना है मैंने
बहस ये मुद्दआ कोई नहीं है
जो है इनसान का क़ातिल बुरा है
वो मुज़रिम है भला कोई नहीं है
मैं शाइर हूँ यतीमों का वो 'चेतन'
भरोसा बस ख़ुदा कोई नहीं है
सज़ा मिलती कैसे मुझको वो यारों
"मुझे पहचानता कोई नहीं है"
प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय चेतन जी अच्छा प्रयास है...आदरणीय धामी जी से सहमत हूँ...
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
सबूतों बात ये कह दी अभी से"" इस पंक्ति का भाव कुछ स्पष्ट नहीं हो सका है।
अकेलापन बड़ी सबसे सज़ा है//इसे ऐसा करने से कुछ प्रभाव बढ़ेगा- अकेलापन सजा सबसे बड़ी है । सादर...
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