रोशनी उस पार बेढब नित दिखाती खिड़कियाँ
काश नन्ही भोली चिड़िया खोल पाती खिड़कियाँ/१
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है नहीं कोई उबासी सोच पर हावी सनम
ताजगी का एक झोंका नित्य लाती खिड़कियाँ/२
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दूर पथ पर चाँद बढ़ता हसरतों से देखना
याद का झोंका लिए यूँ याद आती खिड़कियाँ/३
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इस हवा को बात कोई कर रही बेचैन क्या
द्वार के ही साथ जो ये खटखटाती खिड़कियाँ/४
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ढूँढ लेना छाँव पन्छी पेड़ की इक डाल पर
दोपहर की धूप से जब कुम्हलाती खिड़कियाँ/५
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कर दिया जर्जर समय ने ओढ़ ली हर बेबशी
यूँ न झोंका शीत का जो रोक पाती खिड़कियाँ/६
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रख न पायी अपने हिस्से एक भी यूँ झोपड़ी
किन्तु महलों की हमेशा यार थाती खिड़कियाँ/७
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मौलिक /अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
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