दुर्दशा हुई मातृ भूमि जो, गंगा ...हुई... .पुरानी है
पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता-कथा सुनानी है !
दोहा ..सोरठा ..सवैया तज, कवि मुक्त काव्य लिखता है ।
सिद्ध छंद छोड़ काव्य वह अब, भार गिरा कर पढ़ता है ।।
ग़ज़ल उसे बहुत भाती रही, याद ,.,कविता.. दिलानी है ।
कविता का ..मर्म नहीं.. जाने , घुट्टी ..उन्हें ...पिलानी है ।।
पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !
माँ शारदे .. सुन, वरदान दे, दास काव्य का..बन जाऊँ ।
कि नित नये छंद रचूँ माँ मैं, जनगण का बन मन छाऊँ।।
भाव भरी हो.. कविता ..मेरी, जन हित ही.. जो गानी है ।
सत्य सिद्ध हो जिसका.. मैया, रचना.. अमर कहानी है।।.
पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !
अन्य कवि रचें काव्य भारती, हो कविता जन प्रिय सारी ।
ध्येय सदैव जन कल्याण हो, मनुज हित ..साधना जारी ।।
राह मिले जीवन जीने की, काव्य ..नहीं ...निगरानी है ।
रस में सही गति कविता की, दुर्गति ..नहीं.. करानी है ।।
पावन देवि सरस्वती तुझे कविता - कथा सुनानी है !
कि तोड़ छंद नवगीत लिखते, अकविता, कविता नहीं है ।
प्रयोग वाद नयी कविता कब, प्रयोग वो सही नहीं है ।।
खोज नये बिम्बों की हो तो, सदैव.. श्रेष्ठ. .....बतानी है ।
अंततः काव्य समय-समर्पित, बात यही कवि जानी है।।
पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !
भाषा सदा.. प्रवाहमयी हो, बोल चाल.. कवि की ..भाषा ।
आम जन उसे समझ सके माँ, जीवन की हो परिभाषा ।।
हिन्दी भाषा... सर्वश्रेष्ठ.. है, पाचन - क्षमता ....जानी है ।
संस्कृत उर्दू फारसी सखी, अरबी.... भी ..पहचानी है ।।
पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !
प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।
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