दिया दिखाते सूर्य को, बनकर वो कवि सूर ।
आखर एक पढ़ा नहीं, महफिल की हैं हूर ।।
बुद्ध ...पड़े ..बेकार ..हैं, जग की रेलम पेल ।
कि गधों के सिर ताज है, चलते उलटी रेल ।।
नवाँकुरों ..के घर हुई, उस्तादों... से रार ।
आज ग़ज़ल प्राईमरी, मीर भी गिरफ्तार ।।
छूट मिली थी जो चचा , उन्हें नहीं दरकार ।
आँखों ..के ...अन्धे हुए, घर के पहरे दार ।।
ज़ुल्म करते रहे अदब, बदल काफिया यार ।
अबलाओं पर वो करें, घर - घर अत्याचार ।।
दबंगई उनका शगल, अरु ...जूतमपैजार ।
पाल रखे हैं घर कई, यहाँ ..अलम्बरदार ।।
प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन
मौलिक व अप्रकाशित
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