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जब आजादी पायी है तो, आजादी का मान रखो।
देश, तिरंगे, लोकरीति की, सबसे ऊँची शान रखो।।
*
पुरखों ने बलिदान दिया था, खुली हवा हम पायें।
मस्त गगन में विचरें, खेलें, मिलकर लय में गायें।।
राजनीति की चकाचौंध में, कभी नहीं भरमायें।
भले-बुरे की, सोचें समझें, तब निर्णय पर आयें।।
*
सिर्फ स्वार्थ की अति से बेबश, पुरखे दास बने तब।
स्वार्थ न फिर सिर चढ़े हमारे, सोते जगते ध्यान रखो।
*
भूमि एक थी, धर्म एक तब, किन्तु एकता टूटी।
इस कारण ही सब ने आकर, इज्जत अपनी लूटी।।
बँटवारे के साथ देश की, सोच - समझ भी फूटी।
आज विविधता किन्तु न चेते, नित्य एकता कूटी।।
*
अक्षुण होगी तब आजादी, जब हम में होगा एका।
चतुर बनो सब भारतवासी, खुद को मत नादान रखो।।
*
पुरखों की थी चाह न दोगे, शीष देश का झुकने।
मजहब-मजहब खेल रहे पर, भूल देश को अपने।।
अपनों से लड़ गैरों सम्मुख, टेक रहे नित घुटने।
पोष रहे इस विधि से तो हम, नित दुश्मन के सपने।।
*
आन विदेशी कहीं एक दिन, फिर ना शासन छीने।
इतिहासों के पन्ने पढ़लो, पिछले छल का ज्ञान रखो।।
*
कर्तव्यों से विमुख हमेशा, अधिकारों का रोना।
ऐसी बातों से कब बोलो, भला देश का होना।।
सिर्फ स्वार्थ को जीना तो है, केवल बोझा ढोना।
शांति हर्ष को ऐसे सब ने, तब निश्चित है खोना।।
*
अपनी आजादी की चिन्ता, कर्तव्यों के साथ करो
पर औरों की आजादी भी, रक्षित हो ये ध्यान रखो।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 2, 2023 at 12:29pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 18, 2023 at 2:40pm
वाहहहहहह बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई सर

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