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काश कहीं ऐसा हो जाता

काश कहीं ऐसा हो जाता, 

मैं जगता तू सो जाता 

मेरी हंसी तुझे मिल जाती 

तेरे बदले मैं रो लेता 

काश कहीं ऐसा हो जाता 

तू चलता मैं थक जाता 

पैर तेरे कभी ना रुकते तू 

अपनी मंज़िल को पाता 

काश कहीं ऐसा हो जाता 

दोनों का मन एक जैसा होता 

सोच जो मेरे मन में आती 

वही खयाल तेरा भी होता

 

काश कहीं ऐसा हो जाता 

तेरे तन में मेरा मन होता 

तो मैं तुझको याद ना करता 

ना तू मेरे बीन रह पाता 

काश कहीं ऐसा हो जाता 

दर्द को तेरे मैं ले पाता 

तू चैन  से साँसे लेता और

मैं चैन से फिर सो जाता

"मौलिक व स्वरचित" 

अमन सिन्हा 

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Comment by मिथिलेश वामनकर on June 2, 2024 at 2:19pm

आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।

ना तू मेरे बीन रह पाता (बिन)

कृपया ध्यान दे...

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